Sunday, 23 September 2012

विकास को तो होना ही पड़ेगा


                 

        देश में आज जो हालात बन रहे हैं उससे तो यही लगता है कि विकास को तो हर हालत में होना ही पड़ेगा.दो,दो विकास पुरुष पूरब और पश्चिम से विकास करने के लिए निकल पड़े हैं,ऐसे में भला विकास होने से कौन रोक सकता है.बिहार में विकास हुआ है, वहां सड़कें बन गयी हैं. गुजरात में विकास हुआ है वहां टाटा ने अपनी फैक्ट्री लगा ली है. अब अगर रिपोर्ट कहती है की वहां कुपोषण और भुखमरी दूसरे राज्यों से भी अधिक है तो क्या हुआ ,विकास तो हुआ है. अगर विकास हो रहा है तो आधे लोग कुपोषण का शिकार हैं यह कोई मुद्दा नहीं रह जाता.नहीं नहीं ऐसा मत सोचिए कि विकास सिर्फ बिहार और गुजरात में ही हो रहा है. यह विकास का मौसम है और विकास हर जगह,हर क्षेत्र में हो रहा है. सत्ता पक्ष, विपक्ष, नेता अभिनेता सब के सब विकास करने पर उतारू हैं.भाई लोग कहेंगे कि कहाँ हो रहा है विकास दिखाई तो नहीं दे रहा.अरे भाई, हर चीज़ दिखाई नहीं देती है. कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो दिखाई नहीं देती हैं,उन्हें ज्यामिति के प्रमेय की तरह सिद्ध करना पड़ता है. विकास=सेंसेक्स+ विकास दर+अरबपतियों की संख्या.
              अगर सेंसेक्स ऊपर जा रहा है तो पक्का समझ लो देश का विकास हो रहा है. कुछ महीनों से ऐसा हुआ कि सेंसेक्स ऊपर नहीं जा रहा था. यह बहुत चिंता का विषय था.लेकिन हमारी सरकार तो पूरी तरह विकास करने पर उतारू है फिर उसे यह कैसे बर्दाश्त हो सकता था कि सेंसेक्स ऊपर न जाए. सो उसने तुरंत FDI यानी प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को मंजूरी दे दी. कल ndtv पर कांग्रेसी नेता जगदम्बिका पाल ने बताया कि सेंसेक्स ऊपर नहीं जा रहा था इसलिए FDI को मंजूरी दी और उसका प्रभाव भी हुआ यानी एक दिन में ही सेंसेक्स 400 अंक से ज़्यादा ऊपर पहुँच गया. उन्होंने FDI का विरोध कर रहे भाजपा नेता से पूछा कि आप विरोध कर रहे हैं, आपके मेनिफेस्टो में नहीं लिखा था कि आपकी सरकार बनी तो FDI को मंजूरी देगी? तो दोस्तों विकास के लिए सेंसेक्स का ऊपर जाना ज़रूरी है और सेंसेक्स को ऊपर ले जाने के लिए FDI को मंजूरी देना ज़रूरी है. तो देश के विकास के लिए FDI को मंजूरी देना तो तय है. 2014 में चुनाव है.सो आपको तय करना है कि आप विकास कांग्रेस से करवाना चाहेंगे,भाजपा से करवाना चाहेंगे, तीसरे मोर्चे से करवाना चाहेंगे या फिर चौथे मोर्चे से करवाना चाहेंगे.
        विकास का दूसरा पैमाना है विकास दर. हमारी विकास दर तो दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ रही है. अगर आपके काफिले का सरदार सक्षम है तो फिर आपको मंजिल मिल ही जाएगी. फिर हमारे देश के पास तो दो दो सरदार हैं. योजना आयोग के सरदार विकास के लिए अच्छी योजनाएं बना रहे हैं और देश के सरदार उन्हें लागू कर रहे हैं. मैंने प्रधानमंत्री को आज तक कभी बोलते नहीं देखा सिर्फ एक बात के अलावा-वे देश की विकास दर किसी भी कीमत पर नहीं गिरने देंगे. मैं जब भी टीवी खोलता हूँ एक चित्र बार बार दिखाई देता है,हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने वाएं हाथ को कोट की जेब में डालकर तेज़ी से भागते हुए दिखाई देते हैं. उनके साथ हाथों में फाइलें पकड़े चार पांच लोग और होते हैं. जैसे वे न किसी को देखना चाहते हों,न किसी को सुनना चाहते हों, बस भागे जा रहे हैं. मुझे यह तस्वीर देख कर पूरा यक़ीन हो गया है कि वे ज़रूर विकास दर बढ़ाने के लिए दौड़े जा रहे हैं. तो हमारे प्रधानमंत्री प्रतिबद्ध हैं कि किसी भी हालत में देश की विकास दर नहीं गिराने देंगे. जहां तक कोयला घोटाले पर भाजपा ने संसद नहीं चलने दी तब भी उन्होंने यही सफाई दी कि संसदीय प्रक्रिया लम्बी थी,विकास दर बढ़ानी थी,इसलिए बिना समय गंवाए कंपनियों को तुरंत कोयला दे दिय इस पर विपक्ष ने प्रेस कोंफ्रेंस कर के जो कहा उसका मतलब यह था कि हो सकता है कि प्रधानमंत्री की नीयत विकास दर को तेज़ करने की रही हो पर हकीकत में ऐसा नहीं हुआ.विकास दर कहाँ बढ़ी?कोयला अभी भी खदानों में पड़ा है और कंपनियों को पॉवर की ज़रुरत है. तो दोस्तों देश के विकास के लिए तेज़ी से विकास दर बढ़ाने की ज़रुरत है और विकास दर बढ़ाने के लिए कंपनियों को पॉवर की ज़रुरत है और पॉवर कोयले से मिलाती है. इसलिए बिना किसी विलम्ब के कोयला कंपनियों को दिया ही जाना है. चुनाव २०१४ नज़दीक है.अगर आप को लगता है कि कांग्रेस ने कोयला के खदान में विलम्ब कर दिया तो आप इसके लिए भाजपा या तीसरा  मोर्चा या चौथा पांचवां जो भी पसंद करें वह चुन सकते हैं.
              विकास का तीसरा मानक है ,अरबपतियों की संख्या. जो फ़ोर्ब्स पत्रिका के बारे में जानते होंगे वे यह बात ज़रूर जानते होंगे कि पूरी दुनिया में सबसे अधिक अरबपति हमारे देश में ही बढ़ रहे हैं यानी इससे अंतिम रूप से सिद्ध हो जाता है कि देश तेज़ी से विकास कर रहा है. मैं जानता हूँ  कुछ लोगों को देश का विकास रास नहीं आ रहा है और वे हमेशा इस जुगाड़ में लगे रहते हैं कि सिद्ध कर सकें कि भारत तेज़ी से विकास नहीं कर रहा.वे लोग ज़रूर यही कहेंगे कि देश में आधे से अधिक  बच्चे कुपोषण का शिकार हैं,लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हैं, गरीब और गरीब होता जा रहा है, 70% लोग बीस रु. रोज़ पर गुजारा कर रहे हैं वगैरह,वगैरह. देखिए बात सीधी सी है उसे समझने की कोशिश करिए.विकास का पैमाना अमीरों की संख्या है न कि ग़रीबों की संख्या. अब अगर सरकार ऐसी नीतियाँ बनाए कि 70% जनता हज़ार रु. रोज़ कमाने लग जाए तो उससे क्या हो जाएगा. इस बात को ऐसे समझो- माना देश की कुल संपत्ति दस हज़ार अरब रु. है .अगर सब को यह संपत्ति बराबर बराबर बाँट दी जाए तो सब के हिस्से में दस दस हज़ार आएँगे. इससे देश की बड़ी बदनामी होगी. दुनिया कहेगी भारत में दस हज़ार से ज़्यादा किसी की औक़ात नहीं है. अब अगर नौ लोगों को एक एक अरब दे दिया जाए और बाकी जनता एक अरब में गुजारा कर ले तो दुनिया कहेगी कि भारत तेज़ी से विकास कर रहा है. उसने नौ अरबपति पैदा किए. लोग देश के लिए क्या क्या नहीं कर गए. लोगों ने जान तक क़ुर्बान कर दी. तो सत्तर प्रतिशत लोग, देश के विकास के लिए इतना तो कर ही सकते हैं कि बीस रु. में खर्च चला लें.
             और अंत में सीधी सी बात तो यह है कि भौतिकी का सिद्धांत है हर राशि की एक इकाई होती है आप उसे उसी की इकाई में नाप सकते हैं. आप लम्बाई को मीटर में ही नापेंगे किलोग्राम में नहीं. आप चाल को किलोमीटर प्रति घंटा की दर से ही नापेंगे. इसी तरह विकास को विकास दर से ही नापेंगे. अब अगर भारत की विकास दर दुनिया में सब से तेज़ है तो मान लेना चाहिए देश का तेज़ी से विकास हो रहा है.     

Monday, 17 September 2012

दस साल के एक देशद्रोही की कहानी


                                                      

          आजकल माहौल ठीक नहीं है इसलिए. घर से निकलते हुए बहुत डर लगता है. इसलिए नहीं कि देश की सड़कें बहुत खतरनाक हैं और उनपे आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं,रोज़ दस बीस पच्चीस पचास लोगों के मरने की खबरें आती ही रहती हैं. इन दुर्घटनाओं की तो अब आदत सी पड़ गयी है. डर इसलिए लगता है कि देश की पुलिस बहुत सक्रिय है. नहीं नहीं गलत मत समझिए मैं कोई चोर डकैत नहीं हूँ. और वैसे भी चोर डकैत आजकल बेख़ौफ़ हो गए हैं क्योंकि पुलिस आजकल  या तो हफ्ता वसूली में व्यस्त है और उससे समय मिलता है तो वह देश द्रोहियों को पकड़ने में व्यस्त है.तो मामला यह है कि आजकल घर से निकलते हुए डर लगता है कि पुलिस बहुत सक्रिय है. आजकल वह देशद्रोहियों को पकड़ने में लगी है.आजकल लाखों करोड़ का भ्रष्टाचार कर देना देश द्रोह नहीं है क्योंकि उसके लिए संसद बनी है और उसके लिए बहस होगी, आजकल सेकड़ों लोगों का कत्लेआम करा देना भी देशद्रोह नहीं है उसके लिए जांच आयोग है जो दस साल में जांच कर के कोर्ट को बताएगा कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा,फिर उस पर अपील होगी,फिर उस पर फैसला आएगा और फिर उस पर अपील होगी. कोई पांच दस हज़ार लोगों का क़त्ल करा दे  तो उसके लिए एक कानूनी प्रक्रिया है,जांच आयोग बैठाना, अदालत से फैसला आना फिर उस पर अपील होना फिर उस का फैसला आना फिर उस पर अपील होना, फिर एक जांच आयोग बैठाना, फिर एक फैसला आना, फिर उस पर अपील होना,फिर वही जांच आयोग..फैसला..अपील...
     राज ठाकरे कहते हैं महाराष्ट्र में सिर्फ मराठी मानुष रहेगा,बाकी या तो भाग जाएं, या फिर उन्हें हम मार मार के भगा देंगे. इसका असर भी हो रहा है. लोग सिर पर पैर रख के भाग रहे हैं, भागने के लिए रेलगाड़ियाँ कम पड़ गयी हैं वे फिर भी भाग रहे हैं, आखिर जान किसे प्यारी नहीं होती. यह संविधान का अपमान नहीं है, देशद्रोह नहीं है.अगर होता तो राज ठाकरे जब से राजनीति में आए हैं तब से आज तक यही नहीं कर रहे होते.
          देशद्रोह क्या है और क्या  नहीं है, हो सकता है यह संविधान में लिखा हो और जज या वकील तय करते हों. लेकिन हमारे देश में देशद्रोह क्या है सबसे पहले तो यह पुलिस ही तय करती है. बाद में आप अदालत में हाज़िर किए गए और किसी तरह दस बीस साल में यह तय भी हो गया कि आपने कोई देशद्रोह नहीं किया है तो आप खुद ही मानने लगेंगे कि ज़रूर आपने कोई देशद्रोह किया होगा तभी आपको इतनी सज़ा मिली है.
           तो दोस्तों आजकल देशद्रोह का मौसम सा आ गया है. जिसे देखो वही देशद्रोह करने में लगा हुआ है और पुलिस आए दिन किसी न किसी देशद्रोही को पकड़ लाती है.विशेष कर लेखक,कलाकार,मानवाधिकार कार्यकर्ता वगैरह के लिए तो विशेष तौर से एहतियात बरतने की ज़रुरत है. कुछ लिखना है तो प्रेमिका पर लिख लें दारू पर लिख लें, समाज की समस्याओं पर न लिखें क्योंकि पता नहीं आप का लिखा हुआ कब देशद्रोह बन जाए कुछ नहीं कह सकते. अगर आप कार्टूनिस्ट हैं तो वैसे ही कार्टून  बनाएं जैसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निर्देश दिए हैं यानी फूल पत्ती वगैरह बना लेंपुलिस, फ़ौज निर्दोषों को मारे तो यह सच्चाई कभी न बोलें वरना यह देशद्रोह होगा. घर से निकलें तो अच्छी तरह देख लें कि थैले में कोई किताब वगैरह तो नहीं पड़ी है वरना वह देशद्रोह हो सकता है.  
                लेकिन सवाल यह है कि आप कितना एहतियात बरतेंगे. अब देखिए उमा भारती चेग्वेरा को आदर्श बताती हैं तो वे देश भक्त हैं और आप उसे आदर्श मानेंगे तो आप देशद्रोही हो सकते है. आपके थैले में चेग्वेरा की जीवनी मिल गई तो कोर्ट में एक दलील तो हो ही सकती है कि एक व्यक्ति जिसने एक देश की व्यवस्था उखाड़ने में हिस्सा लिया और वहां की व्यवस्था उखड गई तो देश छोड़ के दूसरे देश में ऐसा करने के लिए चला गया. ऐसे खतरनाक व्यक्ति की जीवनी पढ़ना देशद्रोह ही होगा.
              बात यही है कि बेशक आप एहतियात बरतें पर पुलिस को आपका कोई काम पसंद आ गया देशद्रोह लगाने के लिए तो वह तो लगा ही देगी. कोई बता रहा था कि उनके पड़ौस में दस साल के एक  बच्चे पर पुलिस ने देशद्रोह का मुक़द्दमा लगा दिया है. हुआ यह कि बच्चे ने एक शेर जैसी आकृति अपनी कॉपी में बना दी जिसकी भनक पड़ौसी को लग गयी. पड़ौसी जो रात दिन देश को शर्मिन्दा करने वाले कामों में लगा रहता था उसकी देश भक्ति चित्र को देखकर जाग गयी और उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी कि मेरे पड़ौसी के बच्चे ने तीन शेरों की जगह एक शेर बना कर हमारे राष्ट्रीय चिह्न का अपमान किया है. पुलिस जो देश की जनता के लिए ज़रुरत पर कभी उपलब्ध नहीं होती वह तुरंत मौके पर पहुँची और बच्चे को गिरफ्तार कर राष्ट्रद्रोह का मुक़द्दमा लगाती हुई बोली जो बच्चा अभी से ऐसे कारनामे कर रहा है वह बड़े होने पर तो पूरी कक्षा को देशद्रोही बना देगा.

Friday, 14 September 2012

काला धन और सफेद धन


               
       
           आज ऐसा कौन होगा जो यह न जानता हो कि काले धन के लिए जंग लड़ी जा रही है. गरीब से गरीब, जो सिर्फ धन के बारे में जानता था और अब तो वह यह भी भूल चुका था कि धन होता क्या है वह भी जान गया कि धन काला भी होता है और उसके खिलाफ जंग लड़ी जा रही है. जंग खुद  बाबा रामदेव ने छेड़ी है.जब बाबा रामदेव ने रामलीला मैदान में ऐलान किया कि देश में इतना  काला धन है कि सबको एक एक लाख रु. मिल जाएंगे तो मध्यम वर्ग के उन लोगों को काले धन के बारे में यक़ीन सा हो गया जिनकी अब तक की ज़िंदगी धन प्राप्त करने के लिए सनीचर उतरवाने में या काल सर्पदोष दूर करने में निकल गयी थी.तो  काले धन के खिलाफ जंग छिड़ चुकी है और जंग खुद बाबा रामदेव ने छेड़ी है..ठीक भी है , बीमारी का इलाज़ वही ठीक तरह कर सकता है जो उसका विशेषज्ञ है. और काले धन के बारे में बाबा रामदेव से बेहतर और कौन समझ सकता है. बाबा ने कुल आठ  साल में ही तेरह अरब की संपत्ति इकट्ठी कर ली. फिर संपत्ति तेरह अरब है कि तेरह खरब है इसे कौन जाने. इतनी तो बाबा बता रहे हैं. जिनके पास काला धन होने की शक की जाती है वे तो रामदेव से भी कम संपत्ति होने का दावा करते हैं.खैर जो भी हो इतना तो तय है कि बाबा को धन या काला धन की अच्छी समझ है, वे धनवान हैं और जानते हैं कि आठ दस साल में ही अरबों खरबों की संपत्ति कैसे बनाई जा सकती है. इसलिए वे काले धन की जंग लड़ने के लिए सबसे उपयुक्त हैं. जंग के लिए सेना की ज़रुरत होती है और सेना पालने के लिए काफी धन चाहिए. सेनाए पहले राजाओं के पास होती थीं या अब बिहार के ज़मीदारों के पास हैं.. अब बाबा रामदेव ने सेना बनाने की बात की है. तो यह अच्छी बात है. बाबा को काले धन की समझ है, जंग लड़ने के लिए सेना की ज़रुरत होती है और सेना पालने के लिए धन चाहिए. बाबा के पास समझ भी है और धन भी है इसलिए वे काले धन की जंग लड़ने के लिए सबसे उपयुक्त हैं. जंग की तो बात छोड़िए आजकल चार छह दिन की अनशन तक में करोड़ों का खर्च आ जाता है. सो काले धन के खिलाफ जंग लड़ने के लिए बाबा रामदेव से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता. हाँ,अगर हसन अली भी बाबा के साथ आ जाते तो यह जंग मुक़म्मल हो जाती.
               भाजपा का कहना है कि काला धन वापस लाने की बात सबसे पहले आडवानी ने की थी इसलिए हमें बाबा को समर्थन देने का पूरा अधिकार बनाता है.ज़रूर बनता है. बल्कि मैं तो कहता हूँ कांग्रेस का भी यह अधिकार बनना चाहिए.. वह भी कह रही है कि वह काले धन के लिए सख्त क़दम उठा रही है. खैर ये राजनीतिक मसले  हैं.उन्हें ज़रुरत पड़ी तो ज़रूर अपने अधिकारों का उपयोग करेंगे और एक दूसरे को समर्थन देंगे.
          तो बात काले धन के लिए छिड़ी जंग की हो रही थी. तो जब से बाबा रामदेव ने कहा है कि देश के बाहर बहुत काला धन है और वह वापस आ गया तो सबको एक एक लाख रु. मिल जाएगा तब से हर आदमी ने मान लिया है कि देश में काला धन है और वह वापस आना चाहिए. हमने भी काले धन के बारे में एक सपना देखा था.इसका मतलब यह मत समझना  कि हमने काला धन इकट्ठा करने के बारे में सपना देखा था, जैसा कि नेता, नौकरशाह, छोटे बड़े पूंजीपति, फ़िल्म स्टार,क्रिकेट खिलाड़ी या कुछ दूसरे खिलाड़ी, व्यापारी अथवा उच्च वर्ग के दूसरे लोग देखते हैं. हमने सचमुच का काले धन की लड़ाई के बारे में सपना देखा था. आप   भी सुने.
     तो पूरे देश में काले धन को लेकर जंग छिड़ी हुई थी. देश भर में काले धन के लिए छापामारी चल रही थी. धन समेटे नहीं समेटा जा रहा था. नेता ,नौकरशाह,पूंजीपति,क्रिकेटर,फिल्म स्टार,ठेकेदार, ngo मालिक, मीडिया मालिक,भगवान बन चुके  साधू  संत, आदि पर ही देश के कुल धन का सौ दो सौ गुना धन निकल आया कि कुछ लाख जमा करने वाले क्लर्क, छोटे अफसर, कुछ करोड़ या एक दो अरब इकट्ठा कर लेने वाले दुकानदार व्यापारी आदि पर ध्यान  ही नहीं गया.तो ऊपर के काले धन से ही इतनी अधिक संपत्ति इकट्ठी हो गयी. संपत्ति इकट्ठी होने के बाद अभियान का का अगला  चरण  शुरू हुआ  कि इस संपत्ति का क्या  किया जाए. यहीं आकर अभियान चलाने वालों के बीच कुछ मतभेद पैदा हुए. कुछ लोगों का मानना था कि होना जाना कुछ नहीं है,अब तक का अनुभव यही कहता है, इस लिए ले देकर मामले को यहीं रफा दफा करो. कुछ ने कहा सरकारें पहले भी ऐसी स्कीमें चलाती रही हैं, एडजस्टमेंट यानी काले को सफ़ेद करने वाली.सो पांच दस परसेंट जो भी बनता हो वह इनसे जमा कराओ और इन्हें दफा करो. कुछ ने चेताया कि आप नहीं जानते इन लोगों को, अगर आप ने इन पर कोई कार्रवाई की तो विकट समस्या खड़ी हो सकती है. देश की सारी विकास दर इन्हीं लोगों की वजह से बढ़ रही है.अगर इनके खिलाफ कुछ हुआ तो अमेरिका नाराज़ हो जाएगा क्योंकि १९९० में उसने भारात में जो आर्थिक उदारीकरण नीति लागू कराई थी वह तेजी से देश की विकास दर बढ़ाने के लिए ही लागू कराई थी. कुछ ने कहा यह मामला बहुत पेचीदा है इसलिए बहुत सोच समझ के निर्णय लेना चाहिए. हमारी मानो तो इसे कोर्ट पर छोड़ दो वह जैसा चाहे वैसा करे. कोर्ट को कुछ भी करने का हक भी है. उसके खिलाफ कोई कुछ कहेगा भी नहीं क्योंकि वह अदालत की अवमानना होगी. वह चाहे तो जेसिका के,मट्टू के हत्यारों को छोड़ सकता है,भंवरी देवी के बलात्कारियों को इज्ज़तदार बता सकता है. तो फिर इस मामले में भी ज़रूर कुछ ऐसा फैसला दे सकता है.
            तो दोस्तों यह तय हुआ कि एक चार्जशीट तैयार की जाए और उसे कोर्ट में पेश किया जाए. तो चार्जशीट तैयार करने का काम शुरू हुआ. लोगों से पूछा गया कि उनके पास इतना धन कहाँ से आया तो उन्होंने बताया कि यह सब लक्ष्मी गोबिन्दा की कृपा से आया है. मैं जानता हूँ कि बहुत से धार्मिक विद्वानों को इस पर आपत्ति होगी. वे कहेंगे कि यह बात सोलह आने भर सत्य है कि जिस पर लक्ष्मी की कृपा होती है  धन उसी के पास आता है. वे धन की देवी हैं और वे चाहेगीं उसके पास धन जाएगा,वे नहीं चाहेगीं उसके पास नहीं जाएगा. लेकिन लक्ष्मी गोबिन्दा कहना एकदम गलत है क्योंकि लक्ष्मी विष्णु की पत्नी हैं. हालांकि गोबिन्दा भी विष्णु के अवतार थे पर राधा गोबिन्दा और लक्ष्मी विष्णु कहना ही श्रेष्ठ है. दोस्तों में यहाँ विष्णु के अवतार गोबिन्दा की बात नहीं कर रहा हूँ , मैं फिल्म स्टार गोबिन्दा की बात कर रहा हूँ. उन्होंने शुभ धन वर्षा का आविष्कार किया है जो धन की देवी लक्ष्मी की कृपा से आपका घर दौलत से भर देती है. कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि गोबिन्दा शुभ धन वर्षा के आविष्कार में न जुटते और अमिताभ बच्चन की तरह छोटे मोटे अंधविश्वास व टोने टोटके से काम चला लेते तो आज सुपर स्टार अमिताभ बच्चन नहीं गोबिन्दा होते. तो ये लोग यही कह रहे हैं कि उन्होंने साढ़े तीन हज़ार रु. भेज कर फिल्म स्टार गोबिन्दा की शुभ धन वर्षा मंगाकर घर में स्थापना की फिर लक्ष्मी जी की कृपा से उनके घर अपार धन दौलत टूट पडी. जिसे आप काला धन कह रहे हैं यह वही धन दौलत है.
              दोस्तों जांच करने वाले यह मानने को तैयार नहीं हैं और वे पूछताछ को आगे बढ़ाना चाहते हैं. लोगों का कहना है कि ऐसा कर के वे धन की  देवी लक्षी का अपमान कर रहे हैं,लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं. जनता उसे बर्दास्त नहीं करेगी, वह सड़कों पर उतर आएगी. देश में या तो क्रान्ति हो जाएगी या फिर व्यवस्था परिवर्तन हो जाएगा. हमें ध्यान होगा रामदेव और केजरीवाल भी यही दो बातें कहते रहे हैं. तो सरकार डरी हुई है और उसने अपनी इंटेलीजेंस को यह जानने के लिए लगा दिया है कि क्या ये लोग ठीक कह रहे हैं कि जनता क्रान्ति या व्यवस्था परिवर्तन कर देगी. इंटेलीजेंस ने पता लगाया कि ये लोग बिलकुल ठीक कह रहे हैं,जनता ऐसा कर सकती है. सरकार असमंजस की स्थिति में है.और ऐसी स्थिति में सरकार एक ही काम कर सकती है कि वह जांच बैठाए. लेकिन समस्या यह है कि यह मामला थोड़ा दैवीय किस्म का है और जांच के लिए आदमी खोजना मुश्किल हो रहा है जिस पर लोग भरोसा कर सकें. अंततः यह तय किया गया कि इस काम के लिए बाबा रामदेव जैसे योगी व्यक्ति ही सर्वथा उपयुक्त हैं.
     तो दोस्तों बाबा रामदेव ने जांच शुरू की. उन्होंने कुछ अपने ठोस सांसारिक अनुभव व कुछ अपने योग ध्यान की तीसरी आँख से देख कर बताया कि ऐसा पूर्णतः संभव है. यह संपत्ति इन्हें शुभ धनवर्षा की स्थापना और माँ लक्षी की कृपा से ही मिली है. अतः इन लोगों को अविलम्ब संपत्ति लेकर जाने दिया जाए और उन्हें देश की विकास दर बढ़ाने से न रोका जाए. दोस्तों मेरा सपना पूरा हो गया और मेरी आँख खुल गई. आँख खुलने के बाद मन में यही ख़याल आता रहा कि वास्तविक दुनिया में यह सपना कभी पूरा न  हो.                

Monday, 10 September 2012

काल सर्प दोष यहाँ दूर करवाइए

              अगर आपको व्यापार में नुकसान हो रहा हो, क्रिकेट नहीं खेल पा रहे हैं , और कोई समस्या है, जहां तक कि आप चोरी करने जाते हैं और जनता या पुलिस आप के पवित्र काम में व्यवधान डाल देती है और आप चोरी जैसे  पवित्र काम में सफल नहीं हो पा रहे हैं तो एक बार यह ज़रूर दिखावा लें कि कहीं आप की कुण्डली में कालसर्प दोष तो नहीं है.  
         विजय माल्या की कुण्डली में काल सर्प दोष है. पिछले वर्ष उनकी एयरलाइन्स घाटे में चली गयी थी और उसे बेलआउट करने की चर्चा ज़ोरों पर रही. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.दरअसल यह समय काल सर्प दोष के लिए बहुत अनकूल है.वह चुपके से लोगों की कुण्डली में घुस जा रहा है. लोग ही क्या इस वक़्त देश के देश काल सर्प की इस हरकत से परेशान हैं. यूनान की अर्थ व्यवस्था बैठ गयी और उसे बेलआउट करना पड़ा. स्पेन भी इसी कगार पर है. यूरोप के कई देश इस समय काल सर्प दोष से गुजर रहे हैं.ऐसे में अगर विजय माल्या की कुण्डली में काल सर्प घुस गया है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.  तो यह तय हो गया है कि माल्या की कुण्डली में कालसर्प दोष है. और दोष का पता चल जाए तो उसे दूर करने में कितना समय लगता है. कितने  मंदिर कालसर्प दोष दूर करते हैं. तांत्रिकों से लेकर पण्डे-पुजारी तक कालसर्प दोष दूर करने में लगे हैं. सो पता  चलते ही माल्या ने भी अपनी कुण्डली से कालसर्प दोष दूर कराना उचित समझा.         
         अब माल्या कोई छोटे इंसान तो है नहीं. बड़े लोग हैं सो बड़े लोगो का कालसर्प दोष भी बड़ी जगह और भव्य तरीके से ही दूर हो सकता है. सो माल्या के लिए सुब्रह्मन्यम मंदिर ही कालसर्प दोष दूर कराने की सबसे बेहतर जगह हो सकती थी. वे मंदिर गए और बीच में कालसर्प बने सोने के दरवाज़े को मंदिर में चड़ाया.हालांकि वे कह रहे थे कि कालसर्प दोष से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है यह मैंने आस्था के कारण चढ़ाया है. मीडिया बीच में बने कालसर्प पर गोला लगा कर बार बार उनकी इस बात को झुठला रहा था. खैर जो भी हो भगवान सोने के इस विशाल दरवाज़े से गुजरते हुए क्या महसूस नहीं करेंगे कि महामंदी के इस दौर में भी मेरे भक्त ने मुझे सोने के दरवाजे से गुज़रने का मौक़ा दिया है तो मैं क्यों न उसका सर्प दोष दूर कर दूं. जो भी हो पर मैं सोचता हूँ जब माल्या मंदिर मैं आस्था लेकर जाते होंगे तो भगवान से क्या कहते होंगे, हे प्रभु तू ऐसा कर कि लोग पानी की जगह दारू पीने लगें ,इसी से मेरा मुनाफ़ा बढेगा और तभी कालसर्प दोष दूर होगा. अगर मुझ पर  तेरी ऐसी कृपा हुई  तो मैं  दरवाज़ा क्या तेरा  मंदिर ही सोने का बनवा दूंगा.
   बहुत से ऐसे लोग जिन्हें लगता है कि उनकी कुण्डली में काल सर्प दोष है वे निराशा से आहें भरते हैं कि वे सुब्रह्मण्यम मंदिर कैसे जाएं और उनके पास चढाने के लिए सोने का दरवाज़ा भी नहीं है. ऐसे लोगों के लिए भी कालसर्प दोष दूर करने वालों ने व्यवस्था कर रखी है इसलिए उन्हें निराश होने की ज़रुरत नहीं है. आजकल गाँव गाँव और घर घर ऐसे कालसर्प दोष दूर करने वाले घूमते हैं . अगर आपके पास सोने का दरवाज़ा नहीं है तब भी कोई बात नहीं आप कोई सोने की चीज़ दरवाज़े पर रख कर दे दें. अगर आपके पास सोने की चीज़ भी नहीं है तो पीले रंग का रेशमी कपड़ा, पांच सौ एक और वो भी नहीं है तो एक सौ एक ही सही,उसे ही रख कर दे दें. अगर आप यह भी नहीं दे सकते और रोज़ कुँआ खोद के पानी पीने वालों में हैं तब भी कोई बात नहीं आप  जैसी गुंजाइश रखते हैं उसके अनुसार किलो दस किलो अनाज के साथ थोड़ा सोना और वह भी नहीं है तो पीला धागा रख के ही किसी ब्रह्मण से काल सर्प दोष दूर करा सकते हैं.
                   अब यह रोना मत  रोइए कि भगवान पैसे वालों की ही सुनता है. अरे भाई आप भगवान को क्या बेवकूफ समझते हैं. पैसे वाला  सोने का दरवाज़ा चड़ा रहा है और आप पीले धागे से ही भगवान को टहला  रहे हैं. जैसा आपका नज़राना है वैसा भगवान कालसर्प दोष दूर करेगा.                        

Wednesday, 5 September 2012

आखिर विकास का मामला है

              आजकल टीवी चैनलों पर एक ही बहस है
, संसद के न चल पाने की समस्या. यानी संसद का न चल पाना आज की सबसे बड़ी समस्या है. कुछ लोग कह रहे हैं कि यह कोई समस्या ही नहीं है.संसद पिछले 65 सालों से चल रही है फिर भी वहीं खड़ी है जहां अंग्रेज खड़ी छोड़ गए थे.फिर ऐसे चलने का क्या फ़ायदा? कुछ लोग कह रहे हैं अच्छा है जो संसद नहीं चल रही, अगर चलती भी तो क्या होता यही कि एक दूसरे से गाली गलौज होती, माइक फेंके जाते, कुर्सिया तोड़ी जातीं,हाय हाय शर्म करो का भभड़ मचाया जाता. अगर ऐसा कुछ नहीं किया जाता तो एक ही काम करने के लिए बचता है, कंपनियों को कोयला आवंटित करना या टू जी आवंटित करना या फिर उन्हें बालको जैसी मुनाफ़ा कमाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी कंपनियों को सौंपना.ये सब काम जनता के हित में नहीं हैं इसलिए संसद का न चल पाना जनहित में है. जो भी हो पर यह बात सच है कि संसद नहीं चल पा रही है और संसद न चल पाने का कारण है कोयला घोटाला और कोयला घोटाले का कारण है कैग की रिपोर्ट. चूंकि कांग्रेस कोई घोटाला करना नहीं चाहती थी और कैग की रिपोर्ट एक नया घोटाला कर रही थी इसलिए कांग्रेस ने यही उचित समझा कि कैग की रिपोर्ट को झूठा कह कर घोटाला होने से रोका जाए .विपक्ष ने अपना विपक्ष धर्म निभाते हुए इस बात को दोहराया कि कैग की रिपोर्ट एकदम सही है और घोटाला होने दिया जाए. इस तरह एक और घोटाला हो गया 1.86 लाख करोड़ का. आप सोच रहे होंगे कि मैं इसे महा घोटाला क्यों नहीं कह रहा हूँ तो इसका जवाब यह है कि अभी डेढ़ साल पहले ही टू जी हुआ है 1.70 लाख करोड़ का. तब यही कहा गया था कि यह बहुत बड़ा घोटाला है और इसे महा घोटाला का नाम दिया गया था. फिर 500-1000 करोड़ के घोटाले तो रोज़ ही हो रहे हैं और उन्हें नोटिस भी नहीं किया जा रहा, उन्हें बस छोटी मोटी चोरी माना जा रहा है. इसलिए नई शब्दाबली के अनुसार लाख दो लाख करोड़ के मामले को महाघोटाला कहना कहीं से भी उचित नहीं है. खैर कांग्रेस ने एक बार फिर घोटाला रोकने की कोशिश की और बताया कि कैग को इस तरह की गणना करने का कोई अधिकार नहीं है. विपक्ष ने फिर बताया कि अधिकार हो या न हो गणना हो चुकी है और किसी भी हालत में घोटाले को होना ही पड़ेगा. इस तरह करीब दो लाख करोड़ के एक और घोटाले को मज़बूरन होना पडा जिसे आजकल कोयला घोटाला कहा जा रहा है. अगर यह घोटाला, कोयला घोटाला ही रहता तो कोई बात नहीं थी लेकिन जैसे ही विद्वानों ने इसे कोलगेट का नाम दिया भाजपा ने उसे गौर से देखा,कोलगेट ...कोल और गेट...गेट! वे खुशी से चिल्लाए, मिल गया मिल गया. लोगों ने पूछा, क्या मिल गया? वही जिसकी दस साल से तलाश थी, गेट....संसद में घुसने का गेट जिससे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा जाए. तो इस तरह भाजपा ने अपनी रणनीति तय की कि इस गेट का पूरी तरह फाइदा उठाते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचना है और वहां पहुँचने का फाइदा तभी है जब प्रधानमंत्री इस्तीफा देकर कुर्सी खाली करें. इस तरह कांग्रेस के कोयला घोटाला और भाजपा की पक्की रणनीति के साथ संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ.ऐसे में वही हुआ जो होना था यानी कांग्रेस ने कहा घोटाला हुआ है तो संसद में आओ और बहस करो और भाजपा ने कहा प्रधानमंत्री इस्तीफा दें क्योकि प्रधानमंत्री अब हमारा होगा और इसी तरह बहस और इस्तीफा में संसद का यह सत्र गुजर गया. संसद में बहस नहीं हो पाई और आजकल बहस के दो ही स्थान हैं, संसद या टीवी चैनल. तो संसद में बहस नहीं हो रही क्योकि संसद में बहस के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों का बैठना ज़रूरी होता है जबकि टीवी चैनल पर एक ही पक्ष होता है टीवी का मालिक. वह चाहेगा बहस होनी चाहिए तो बहस होगी, वह चाहेगा निर्मल बाबा का दरबार लगना चाहिए तो दरबार लगेगा, वह चाहेगा कि चौबीस घंटे शनि महाराज का प्रकोप दूर करने के टोटके बताए जाने चाहिए तो टोटके बताए जाएंगे. तो आजकल कई टीवी चैनलों पर बहसें चल रही हैं, कोयला घोटाले पर बहसें.ऐसे ही एक चैनल पर कोयला घोटाले पर बहस चल रही थी उसे हम आपको बताते हैं. बहस में एक एंकर, एक कांग्रेसी नेता,एक भाजपा नेता, एक सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी हैं. एंकर ने सवाल पूछा- तिवारी जी आप संसद नहीं चलने दे रहे हैं? तिवारी जी-बिलकुल नहीं चलने दे रहे हैं, सरकार ने दो लाख करोड़ का कोयला घोटाला किया है, हम संसद नहीं चलने देंगे. "भंडारी जी आप बताएं तिवारी जी कह रहे हैं कि सरकार ने करीब दो लाख करोड़ का घोटाला किया है." "देखिए सरकार ने कोई घोटाला नहीं किया. कैग की रिपोर्ट जो पहले झूठी थी और अब सही हो गयी है उससे यह जो 1.86 लाख करोड़ का मामला निकल के आया है वह घोटाला नहीं है घाटा है. कैग का कहना है कि कोयले का आवंटन होने से और नीलामी न होने से कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ का फाइदा हुआ है. और यह सीधी बात है कि कंपनियों को फाइदा हुआ तो सरकार को घाटा हुआ. इसमें घोटाले की बात कहाँ से आ गई. सच यह है कि अभी यह घाटा भी नहीं है. जब कोयला खदानों में पड़ा है, वह निकला ही नहीं तो घाटा भी कहाँ से हो गया. जब कंपनियां कोयला निकालेंगीं, उसका उपयोग करेंगी तब जा कर वह घाटा होगा. अभी तो यह जीरो लॉस ही है. जीरो लॉस यानी आइन्स्टीन के E =M C2 की तरह हमारे कपिल सिब्बल ने एक खोज की है जीरो लॉस." "तिवारी जी आप बताएं कि आप कब तक संसद नहीं चलने देंगे?" "जब तक प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं दे देते हैं. जब प्रधानमंत्री इस्तीफा देंगे,चुनाव होंगे,हमारे मंत्री और प्रधानमंत्री बनेंगे तक संसद चलेगी." "भंडारी जी आप बताएं, क्या आपके प्रधानमंत्री इस्तीफा देंगे?" "बिलकुल नहीं देंगे. कैग की रिपोर्ट के आधार पर भाजपा प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग रही है तो वह बताए कि उसके मुख्यमंत्रियों के बारे में भी कैग की रिपोर्ट ऐसी ही है फिर वे अपने मुख्यमंत्रियों से इस्तीफा क्यों नहीं मांग रहे....इसमें मुख्यमंत्रियों की बात कहाँ से आ गयी,बात प्रधानमंत्रियों के इस्तीफे की हो रही थी.....मुख्यमंत्रियों की बात क्यों नहीं आएगी....प्रधानमंत्री इस्तीफा दें,जनता को पता चल गया है कि आपकी पार्टी भ्रष्ट है...आपकी पार्टी महाभ्रष्ट है..तिवारी जी आप उनकी बात सुन लीजिए ......aapake हाथ कोयले से काले है.....अच्छा भंडारी जी आप ही उनकी बात सुन लीजिए....कर्नाटक में यदुरप्पा और रेड्डी बंधुओं के हाथ भी कोयले से काले हैं..तिवारी जी....आप भ्रष्ट हैं ....भंडारी जी..... आप महाभ्रष्ट हैं...सुनिए तो....आप....अच्छा आप ही चुप हो जाइए....आप...    अब इसमें एंकर क्या करे.पैंतालीस मिनट मिले, उसमें से तीस मिनट विज्ञापन में निकल गए. फिर बहस के के लिए सांसद बुलाए गए जिन्हें लगता है वे जहां भी बैठे हैं संसद की कार्रवाई चल रही है.        तो आजकल ये सब बातें चल रही हैं समाज में. पार्टी अन्ना अभी नई है, रामदेव अभी पार्टी बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं. क्योंकि चुनाव लोकसभा का होना है इसलिए क्षेत्रीय पार्टिया चुनाव में जीती सीटों के आधार पर ही गिनती में आएगीं. पूरा मामला कांग्रेस व भाजपा के आसपास लिपट गया है. ऐसे में हमने भी एक कांग्रेसी और एक भाजपाई के साथ बहस आयोजित की.क्योंकि हमारे पास टीवी चैनल नहीं है इसलिए उसे लाइव नहीं दिखा पाए,आप भी पढ़ें- हमने दोनों से पूछा- संसद नहीं चल पा रही है, आपकी पार्टियों में क्या मतभेद हैं?
दोनों-कोई मतभेद नहीं है, छोटे मोटे मतभेद तो हर जगह होते हैं....हमने उन दोनों की बात बीच में काट कर पूछा- फिर संसद क्यों नहीं चल पा रही है?
कांग्रेसी- विपक्ष अपनी सही भूमिका नहीं निभा रहा है. उसका लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास नहीं है. बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष को सशक्त भूमिका निभानी चाहिए. भाजपाई- यही तो हमारा मत है कि बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष को सशक्त भूमिका निभानी चाहिए. पर सत्ता पक्ष का लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास नहीं है. लोकतंत्र सबको बराबर अवसर देने की बात करता है. हमें विपक्ष की सशक्त भूमिका निभाते निभाते दस साल होने जा रहे हैं.अब हम लोकतांत्रिक भावनाओं का सम्मान करते हुए कांग्रेस को yah अवसर देना चाहते है पर कांग्रेस लोकतंत्र की भावना का सम्मान नहीं कर रही है. प्रधानमंत्री इस्तीफा न देकर ,चुनाव नहीं कराना चाहते और हमें सत्ता पक्ष की सशक्त भूमिका निभाने से रोक रहे हैं. हमने भाजपाई से पूछा- अब तक प्रधानमंत्री सिर्फ एक ही काम के लिए जाने जाते हैं और वो है विकास दर.जब वे वित्त मंत्री थे तब उन्होंने विकास के लिए आर्थिक उदारीकरण को बढ़ावा दिया और प्रधानमंत्री बनने के बाद दस साल होने जा रहे है, उनका एक ही लक्ष्य रहा है विकास दर बढ़ाना. प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा है कि वे विकास दर बढ़ाना चाहते थे और कम्पनियां भी विकास दर बढ़ाने के लिए कम्पनियां भी उतावली हो रही थीं. कंपनियों को पॉवर चाहिए और पॉवर कोयले से बनाती है. क्योंकि संसदीय प्रक्रिया बहुत लम्बी थी इसलिए उन्होंने उन्होंने जल्दी से विकास दर बढ़ाने के लिए जितनी जल्दी संभव था उतनी जल्दी कोयला आवंटित कर दिया. तो क्या आपकी पार्टी विकास की विरोधे है,वह नहीं चाहती कि जल्दी से विकास दर बढे ?"
आपने प्रधानमंत्री का वक्तव्य तो सुन लिया और उसके बाद हमारे नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस कर के जो कहा था वह नहीं सूना." हमारी बात पर वे बुरी तरह उत्तेजित हो गए" हमारे नेताओं ने कहा था, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि विकास दर बढ़ाने के लिए उन्होंने जल्दी आवंटन किया. वे बताएं कहाँ बड़ी विकास दर, कोयला अभी खदानों में पड़ा है,कंपनियों के पास पॉवर नहीं है,बताएं कहाँ बढ़ी विकास दर. अब बताओ कि हमारी पार्टी कैसे विकास विरोधी है.       हम उनसे पूर्ण सहमत हुए. हमें लगा उनके नेता कहना चाहते थे कि सरकार ऐसे ही विकास दर बढ़ाना चाहती है,अगर कंपनियों ने आवंटन के बाद भी कोयला नहीं उठाया तो सरकार को उसे ट्रकों में भरकर उन तक पहुंचा देना चाहिए था. सही है , विकास दर बढ़ाने का मामला है. देश का विकास और देश का कोयला, आवंटन करने की भी क्या ज़रुरत थी, जितनी ज़रुरत हो भर ले जाओ.

Monday, 27 August 2012

डाका,भ्रष्टाचार और काला धन ही असली लोकतंत्र है

           हम लोकतंत्र में रह रहे हैं इसलिए हमें लोकतंत्र के कायदे कानून समझने चाहिए. ख़ास तौर से एक नेता के लिए तो ये अति आवश्यक है कि वह लोकतंत्र के कायदे कानून अच्छी तरह समझ ले तभी ज़ुबान से कुछ बाहर निकाले. लोकतंत्र का कायदा है कि नेता घोटाला करे और पकड़ में आ जाए तो कहे लोकतंत्र में घोटाला बरदाश्त नहीं किया जाएगा , चोरी करे और कहे लोकतंत्र में चोरी बरदाश्त नहीं की जाएगी, ह्त्या करे, बलात्कार करे और कहे उसे अदालत पर पूरा विश्वास है. सो यही ग़लती शिवपाल यादव से हो गयी. उन्होंने लोकतंत्र के कायदे कानून समझे नहीं और अपने सरल स्वभाव में सीधी सच्ची बात बोल दी कि हे अधिकारियो चोरी करो पर डाका मत डालो. नेता नेता का भी फर्क है. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कभी इंदिरा गांधी ने खुद कहा था कि भ्रष्टाचार पूरी दुनिया में है और वह संस्थागत है. कोई बताए कि इस बात का क्या अर्थ है ? क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि जो भ्रष्टाचार है वह लोकतंत्र का हिस्सा है हम लोकतंत्र में जी रहे हैं इसलिए लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए भ्रष्टाचार को तेज़ करो. जिन्होंने 9 अगस्त का बाबा रामदेव का भाषण सुना होगा वे जानते हैं कि बाबा रामदेव बचपन से ही इंदिरा गांधी के भक्त हैं और अब वे भ्रष्टाचार ख़त्म करने व काला धन वापस लाने के लिए रामलीला मैदान में रामदेव लीला कर रहे हैं. शिवपाल यादव ने कहा कि हे अधिकारियो चोरी करो पर डाका मत डालो तो जितने अधिकारियों के साथ मिल कर डाका डालने वाले नेता थे उन्हें बहुत बुरा लगा कि शिवपाल तो डाका डालने के लिए मना कर रहे हैं. लोकतंत्र का कायदा है कि केजरीवाल-किरण बेदी की तरह लाखों डॉलर का ngo
का धंधा करिए और कहिए भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए जान दे देंगे. लोकतंत्र का कायदा है कि अरबों रूपए का काला धन इकट्ठा कर के बाबा रामदेव की तरह काले धन के खिलाफ रामदेव लीला करिए. शिवपाल यादव ने यही ग़लती कर दी. उन्हें पता चल गया कि अफसर डाका दाल रहे हैं सो उन्होंने कहा भई चोरी कर लो डाका मत डालो.          लोकतंत्र में बात कहने के अपने कायदे हैं. अब आप ही बताइए कि राजा , राडिया, टाटा, अम्बानी से बड़ा डाका किसने डाला है? पूरे डाके में राडिया की दलाली यानी लोबिंग की धूम मची हुई थी तब सलमान खुर्शीद कह रहे थे कि लोबिंग लोकतंत्र का हिस्सा है. तब किसी ने बुरा नहीं माना . सो इन चालाक चतुर नेताओं से कोई उम्मीद नहीं है, अगर कोई उम्मीद है तो शिवपाल जैसे नेताओं से ही है कि एक दिन वे अपने सीधे सच्चे अंदाज़ में यह कह सकेंगे कि भैया क्यों इतना हल्ला काट रहे हो घोटाले , काला धन और भ्रष्टाचार ही असली लोकतंत्र है.