Sunday, 31 May 2015

किसान की हालत बहुत खराब है

                                        

       अखबारों में खबर आ रही हैं किसान आत्महत्या कर रहा है। मीडिया में खबर आ रही हैं किसान आत्महत्या कर रहा है। राहुल गांधी किसानों से मिल रहे हैं।  टीवी पर नेता बोल रहे हैं। यानी अब तो यक़ीनन कह सकते हैं कि किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और पूरा देश चिंतित है। राहुल धूप में किसानों से जा- जाकर मिल रहे हैं। टीवी पर बहस हो रही है किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
 एंकर ने पूछा - किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
 नेता ने जवाब दिया- जी किसान आत्महत्या कर रहे हैं। हमारी सरकार किसानों की है। हमारे नेता किसान हैं। राजनाथ,वैंकया नायडू , गडकरी हमारी पार्टी में इतने बड़े-बड़े किसान हैं। हम किसानों का दर्द नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। नेता जी ने राजनाथ की खेत जोतते हुए तस्वीर दिखाई। हम सबका किसान, खेत जोतता हुआ किसान।
एंकर - वह तो ठीक है कि आप की पार्टी में बड़े- बड़े किसान हैं। लेकिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उनके लिए आपकी सरकार क्या कर रही है ?
नेता- हमारी सरकार उनके लिए विकास कर रही है। एक साल में विकास दर 5 से 7 पहुँच गई।
एंकर - विकास दर से किसानों का क्या भला होगा ? आपकी सरकार किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए क्या कर रही है ?
नेता जी- किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए भूमि अधिग्रहण बिल ला रही है।
एंकर - भूमि अधिग्रहण बिल से किसानों की आत्महत्या कैसे रुकेंगी ?
नेता जी - भूमि अधिग्रहण बिल से किसानों की ज़मीन लेना आसान हो जाएगा। उनके पास ज़मीन नहीं होगी तो वे किसानी नहीं करेंगे। किसानी नहीं होगी तो किसान नहीं होंगे। किसान होंगे ही नहीं तो वे आत्महत्या कहाँ से करेंगे।
एंकर - चलिए भूमि अधिग्रहण बिल पास होगा, उसके बाद किसान किसानी छोड़ेंगे  उसमें तो अभी समय लगेगा। अभी ओले- बारिश  से किसान की फसल बर्बाद  हो गई। किसान संकट में है। उसके लिए आप क्या कर रहे हैंनेता जी - पहले पचास प्रतिशत फसल बर्बाद होती थी तब मुआवजा मिलता था , हमारी सरकार ने उसे तैंतीस प्रतिशत कर दिया। इस पर विपक्ष के नेता बोले - इन सब से किसान की आत्महत्या नहीं रुकेंगी। मुआवजा कंपनियां देती ही नहीं। पैसा जनता तक नहीं पहुंचता। सबसे पहले हमारे प्रधान मंत्री ने यह सच्चाई  स्वीकारी  थी कि एक रूपए में पंद्रह पैसे ही जनता तक  पहुंचते हैं। इस पर सत्ता पक्ष के नेता ने कड़ी आपत्ति की- आपके प्रधानमंत्री ने पूरी सच्चाई नहीं स्वीकारी  थी। पूरी सच्चाई यह है कि जनता  तक एक रूपए में  दस पैसे ही पहुंचते थे। इस पर नेता प्रतिपक्ष ने आपत्ति की - हमारी सरकार के समय पंद्रह पैसे ही  पहुंचते थे, अब आपकी सरकार में दस  पैसे पहुंच रहे हैं।
     इस पर एंकर उत्तेजित हो गया- किसान आत्महत्या कर रहा है और आप लोग इस बात पर झगड़ रहे हैं कि जनता तक दस पैसे पहुंचते हैं कि पंद्रह। प्रधानमंत्री किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए क्या कर रहे हैं?
   प्रधानमंत्री किसानों से रेडियो पर मन की बात कर रहे हैं। किसान चैनल लांच कर रहे हैं।  बैंक में खाते खुलवा रहे हैं। बीमा करवा रहे हैं।
        किसान को मन की बात सुनाने और खाते खुलवाने से तो आत्महत्याएं नहीं रुकेंगी।  किसान को खाद नहीं मिल रहा है। बारिश हो जाए तो फसल बर्बाद हो जाती है। सूखा पड़ जाए तो फसल बर्बाद हो जाती है।दिन पर दिन
किसानों की हालत बदतर होती जा रही है। सरकार उनके लिए क्या कर रही है ?
      देखिए सरकार जितना कर रही है उससे अधिक करने की स्थिति में नहीं है। गडकरी जी ने साफ़- साफ़ कहा है - किसान सरकार के भरोसे न रहें। वे अपने लिए खुद कुछ करें ।
    किसान गर्मी- सर्दी में हाड़ तोड़ मेहनत कर रहे हैं वे अपने लिए और क्या कर सकते हैं?
मेहनत तो करते हैं पर हर काम को करने का एक तरीका होता है। आज टेक्नोलॉजी बहुत आगे बढ़ गई पर किसान अभी भी पुराने तरीके से काम कर रहे हैं। हमारे माननीय मंत्री गडकरी जी ने उन्हें जो नई तकनीक समझाई है उसे उपयोग करेंगे तो उन्हें आत्महत्या नहीं करनी पड़ेगी। वह कौन सी तकनीक है?
वह तकनीक है कृषि में स्वमूत्र चिकित्सा। किसानों को अपना मूत्र इकट्ठा करना है और उससे सिंचाई करनी है। गडकरी खुद किसान हैं। वे खुद इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और देखिए आज उन्होंने कितनी तरक्की कर ली। कितनी कहाँ किसके नाम से कंपनियां हैं उन्हें खुद नहीं पता।

         इस पर सारे पैनलिस्टों में तेज़ बहस छिड़ गई। अंत में सत्ता पक्ष, विपक्ष, पत्रकार, समाजशास्त्री और एंकर सब ने माना किसान की  हालत बहुत खराब है और  वे आत्महत्या कर रहे हैं।