रात को देर तक काम करने के कारण नींद पूरी नहीं
हो पाई थी पर जागना मेरी मजबूरी थी.कानों में तेज़-तेज़
आवाजें आ रही थीं-ये देश है वीर जवानों का,अलबेलों का मस्तानों का,इस देश का यारो क्या कहना.आँखें खोलते ही मुझे यकीन हो गया कि
पंद्रह अगस्त आ गया.पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी दो ही तो दिन हैं जब सुबह हमारी
नींद देश भक्ति के गाने सुन कर खुलती है वरना तीन सौ तिरेसठ दिन तो हम देवी
जागरण,भागवत कथा,अजान ,रमजान का शोर सुनकर ही नींद से जागते हैं.
तो नींद खुलते ही हमें पता चल गया कि आज पंद्रह
अगस्त है.सो हम तुरंत मुंह हाथ धोकर ऑफिस के लिए चल दिए.ऑफिस पहुँच कर देखा झंडा
फहराने की तैयारियां चल रही हैं.एक कर्मचारी झंडे को डंडे में बांधने की कोशिश कर
रहा था पर वह इस उलझन में उलझा था कि कौन सा रंग ऊपर रहेगा और कौन सा नीचे.उसने
अपनी समस्या दूसरों को बताई.किसी ने कहा हरा ऊपर रहेगा,किसी ने कहा
केसरिया ऊपर रहेगा.फाइनली यह निश्चित नहीं हो सका कि कौन सा रंग ऊपर रखा जाएगा और
कौन सा नीचे.तभी एक बच्चा स्कूल जाता दिखाई दिया.किसी ने आवाज़ दी. बच्चा हमारी तरफ आ रहा था तो सबके
चहरे पर उम्मीद की एक किरण दिखाई दी.मेरी ज़िंदगी में यह पहला मौक़ा था जब हर किसी
को उम्मीद थी कि जो बात वे नहीं जानते वह यह बच्चा ज़रूर जानता होगा वरना हमारी
संस्कृति में तो लोग बाप बन जाते हैं तब तक घर वाले डांट के चुप कर देते हैं-चुप
कर तू बच्चा है. खैर
समस्या हल हुई तो सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. झंडा रोहण शुरू हुआ.डोरी
खींचने के बाद जनगण मनगण शुरू हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि समूह में कितनी ताक़त होती
है.दो लाइन के बाद चालीस
लोगों ने जब भिन्न-भिन्न आवाजें निकालना शुरू किया तो शेष पांच लोग
उनकी नैया पार लगा ले गए.उसके बाद महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के साथ साथ
भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस के भी नारे लगाए तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि देश
उन्हें भूला नहीं है.
इसके बाद करने को एक ही काम बचता है-भाषणवाजी.
भाषणवाजी शुरू हुई तो, लालकिले पर पंद्रह अगस्त को दिए जाने वाले भाषण
की तरह एक बार फिर वही सब बातें वक्ताओं
ने दोहराईं जो पंद्रह अगस्त को हर बार दोहराई जाती हैं.लेकिन वह भाषण ही क्या
जिसका कोई लक्ष्य न हो और वह वक्ता ही क्या जो अपने भाषण को लक्ष्य तक न पहुंचा
पाए. वैसे पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को दिए जाने भाषणों में ही हमारे वक्ता नाकारा साबित
हुए हैं वरना
पैंसठ साल से चतुर वक्ता भाषण दे कर ही इस देश को बहला रहे हैं और अपने लक्ष्य में
सफल रहे हैं.
ऐसे बिकट समय में जब पंद्रह अगस्त पर भाषण करना
एक कर्मकांड बन गया है अधीक्षक महोदय के भाषण से जैसे उम्मीद के सारे दरवाज़े खुल
गए.इससे पहले जिन वक्ताओं ने लंबा चौड़ा भाषण दिया था कि हमें आज़ादी लंबे संघर्ष के
बाद मिली है,हम शहीदों की कुर्बानी को व्यर्थ नहीं जाने
देंगे.वक्ता हर साल की तरह भाषण देते रहे और श्रोता हर साल की तरह सुनते रहे.वो तो
भला हो हमारे अधीक्षक का.उन्होंने एक छोटा सा भाषण दिया और लोगों में देश भक्ति की
भारी लहर दौड़ पडी. उन्होंने थोड़ा कहा बहुत समझना वाले अंदाज़ में
बोला-देश को आज़ाद कराने के लिए देश भक्तों ने जान की बाजी लगा दी.आज हम इतने
खुदगर्ज़ हो गए हैं कि देश के बारे में कुछ भी नहीं सोचते.अस्पताल में एक्स-रे मशीन
खराब पड़ी है,गरीब
जनता का इलाज़ ठीक से नहीं हो पा रहा है. शहीदों ने देश के लिए जान तक दे दीं,हम देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं
और हम लोग पांच सौ हज़ार रूपए भी नहीं दे सकते.
कुछ लोगों ने हाथ उठाया,सर हम देंगें.वे समझ गए अभी भी देश में
काफी देशभक्ति ज़िंदा है पर वे जानते थे भारत-पाकिस्तान के मैच की तरह कब देशभक्ति
उबाल खा जाए और कितनी जल्दी नीचे उतर आए कुछ भरोसा नहीं.सो वे तुरंत हज़ार का नोट
निकालते हुए बोले-लीजिए सबसे पहले मैं देता हूँ.
अब कितना बजट आता है, कैसे खर्च होता है,ऊपर वाले को पैंतीस परसेंट दे दें,कोई कुछ पूछने वाला नहीं है.भले ही आप
मुम्बई से तकनीशियन बुलाएं और बीस हज़ार उसके आने जाने का खर्च टांक दें.ऑडिट वालों
को उनका चोखा हिस्सा दे दें फिर सब कुछ सही है. लेकिन इन सब बातों का देश और
देशभक्ति से क्या मतलब है. अधीक्षक ने देशभक्ति की भावना इतने लोगों में भर दी भला
पंद्रह अगस्त की इससे अच्छी सार्थकता और क्या हो सकती है.तो जोर से बोलिए-अमर
शहीदों का बलिदान,याद
रखेगा हिन्दुस्तान.