Thursday, 15 August 2013

पंद्रह अगस्त पर देशभक्ति का एक काम

         रात को देर तक काम करने के कारण नींद पूरी नहीं हो पाई थी  पर जागना मेरी मजबूरी थी.कानों में तेज़-तेज़ आवाजें आ रही थीं-ये देश है वीर जवानों का,अलबेलों का मस्तानों का,इस देश का यारो क्या कहना.आँखें खोलते ही मुझे यकीन हो गया कि पंद्रह अगस्त आ गया.पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी दो ही तो दिन हैं जब सुबह हमारी नींद देश भक्ति के गाने सुन कर खुलती है वरना तीन सौ तिरेसठ दिन  तो हम देवी जागरण,भागवत कथा,अजान ,रमजान का शोर सुनकर ही नींद से जागते हैं.
तो नींद खुलते ही हमें पता चल गया कि आज पंद्रह अगस्त है.सो हम तुरंत मुंह हाथ धोकर ऑफिस के लिए चल दिए.ऑफिस पहुँच कर देखा झंडा फहराने की तैयारियां चल रही हैं.एक कर्मचारी झंडे को डंडे में बांधने की कोशिश कर रहा था पर वह इस उलझन में उलझा था कि कौन सा रंग ऊपर रहेगा और कौन सा नीचे.उसने अपनी समस्या दूसरों को बताई.किसी ने कहा हरा ऊपर रहेगा,किसी ने कहा केसरिया ऊपर रहेगा.फाइनली यह निश्चित नहीं हो सका कि कौन सा रंग ऊपर रखा जाएगा और कौन सा नीचे.तभी एक बच्चा स्कूल जाता दिखाई दिया.किसी ने आवाज़ दी. बच्चा हमारी तरफ आ रहा था तो सबके चहरे पर उम्मीद की एक किरण दिखाई दी.मेरी ज़िंदगी में यह पहला मौक़ा था जब हर किसी को उम्मीद थी कि जो बात वे नहीं जानते वह यह बच्चा ज़रूर जानता होगा वरना हमारी संस्कृति में तो लोग बाप बन जाते हैं तब तक घर वाले डांट के चुप कर देते हैं-चुप कर तू बच्चा है. खैर समस्या हल हुई तो सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. झंडा रोहण शुरू हुआ.डोरी खींचने के बाद जनगण मनगण शुरू हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि समूह में कितनी ताक़त होती है.दो लाइन के बाद चालीस लोगों ने जब भिन्न-भिन्न आवाजें निकालना शुरू किया तो शेष पांच लोग उनकी नैया पार लगा ले गए.उसके बाद महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के साथ साथ भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस के भी नारे लगाए तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि देश उन्हें भूला नहीं है.
इसके बाद करने को एक ही काम बचता है-भाषणवाजी. भाषणवाजी शुरू हुई तो, लालकिले पर पंद्रह अगस्त को दिए जाने वाले भाषण की तरह  एक बार फिर वही सब बातें वक्ताओं ने दोहराईं जो पंद्रह अगस्त को हर बार दोहराई जाती हैं.लेकिन वह भाषण ही क्या जिसका कोई लक्ष्य न हो और वह वक्ता ही क्या जो अपने भाषण को लक्ष्य तक न पहुंचा पाए. वैसे पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को दिए जाने भाषणों में ही हमारे वक्ता नाकारा साबित हुए हैं वरना पैंसठ साल से चतुर वक्ता भाषण दे कर ही इस देश को बहला रहे हैं और अपने लक्ष्य में सफल रहे हैं.
ऐसे बिकट समय में जब पंद्रह अगस्त पर भाषण करना एक कर्मकांड बन गया है अधीक्षक महोदय के भाषण से जैसे उम्मीद के सारे दरवाज़े खुल गए.इससे पहले जिन वक्ताओं ने लंबा चौड़ा भाषण दिया था कि हमें आज़ादी लंबे संघर्ष के बाद मिली है,हम शहीदों की कुर्बानी को व्यर्थ नहीं जाने देंगे.वक्ता हर साल की तरह भाषण देते रहे और श्रोता हर साल की तरह सुनते रहे.वो तो भला हो हमारे अधीक्षक का.उन्होंने एक छोटा सा भाषण दिया और लोगों में देश भक्ति की भारी लहर दौड़ पडी. उन्होंने थोड़ा कहा बहुत समझना वाले अंदाज़ में बोला-देश को आज़ाद कराने के लिए देश भक्तों ने जान की बाजी लगा दी.आज हम इतने खुदगर्ज़ हो गए हैं कि देश के बारे में कुछ भी नहीं सोचते.अस्पताल में एक्स-रे मशीन खराब पड़ी है,गरीब जनता का इलाज़ ठीक से नहीं हो पा रहा है. शहीदों ने देश के लिए जान तक दे दीं,हम देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और हम लोग पांच सौ हज़ार रूपए भी नहीं दे सकते.
कुछ लोगों ने हाथ उठाया,सर हम देंगें.वे समझ गए अभी भी देश में काफी देशभक्ति ज़िंदा है पर वे जानते थे भारत-पाकिस्तान के मैच की तरह कब देशभक्ति उबाल खा जाए और कितनी जल्दी नीचे उतर आए कुछ भरोसा नहीं.सो वे तुरंत हज़ार का नोट निकालते हुए बोले-लीजिए सबसे पहले मैं देता हूँ.

अब कितना बजट आता है, कैसे खर्च होता है,ऊपर वाले को पैंतीस परसेंट दे दें,कोई कुछ पूछने वाला नहीं है.भले ही आप मुम्बई से तकनीशियन बुलाएं और बीस हज़ार उसके आने जाने का खर्च टांक दें.ऑडिट वालों को उनका चोखा हिस्सा दे दें फिर सब कुछ सही है. लेकिन इन सब बातों का देश और देशभक्ति से क्या मतलब है. अधीक्षक ने देशभक्ति की भावना इतने लोगों में भर दी भला पंद्रह अगस्त की इससे अच्छी सार्थकता और क्या हो सकती है.तो जोर से बोलिए-अमर शहीदों का बलिदान,याद रखेगा हिन्दुस्तान.  

गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दू हूँ

       गर्व से कहता हूँ मैं हिंदू हूँ. नहीं नहीं मैं भाजपा में शामिल नहीं हुआ हूँ. दरअस्ल राम मंदिर आंदोलन के समय भाजपा ने यह नारा दिया था तब से बहुत से हिंदू गर्व से हिंदू कहने में संकोच महसूस करने लगे हैं. इस समय देश की स्थिति जैसी भी है वह सबको पता है.देश की बहुसंख्यक जनता काफी आर्थिक संकट में है.सत्तर प्रतिशत जनता बीस रूपए रोज़ पर गुज़र कर रही है.ऐसे में उम्मीद बंधी है कि हिंदू धर्म इस देश की बहुसंख्यक जनता को उसके संकटों से निजात दिला सकता है. बस इतनी सी बात है जो मैं गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दू हूँ. यह बात मैं ठोस आधार पर कह रहा हूँ.
     जिस चेनेल को देखिए उसी पर धूम मची हुई है.कहीं हमारे समय के सुपरस्टार गोविंदा शुभधन वर्षा लिए खड़े हैं, कहीं कोई मन्त्र पढ़-पढ़ कर बता रहे हैं कि उनका तंत्र किस तरह हनुमान और शंकर जैसे दो शक्तिशाली देवताओं से सिद्ध किया हुआ है, कोई धन की देवी लक्ष्मी का तंत्र देने को उतावला है तो कोई कह रहा है सिर्फ लक्ष्मी से काम नहीं चलेगा मैं साथ में कुबेर की चाबी भी दूंगा.बन्दे की बात में दम है.एक बैंक मेनेजर भी ताला पियोन से खुलवाता है,लक्ष्मी धन की देवी हैं वे खजाने का ताला खुद तो नहीं खोलेंगी. तो दोस्तों हमारे देवताओं ने इतने एजेंट छोड़ रखे हैं लोगों के धन के अभाव को दूर करने के लिए.कहते हैं भगवान भक्त के वश में होते हैं.भक्तों ने लक्ष्मी,हनुमान,शिवजी सिद्ध कर लिए हैं.अब तो उन्हें वही करना पडेगा जो उनके भक्त कहेंगे.फिर वे एक-डेढ़ हज़ार के डिस्काउंट के साथ मात्र तीन-साढ़े तीन हज़ार में अपना सिद्ध किया तंत्र यंत्र दे रहे हैं, भला इससे सस्ता सौदा और क्या हो सकता है.बस यों समझ लीजिए हमारे देवी -देवता लोगों की धन की समस्या हल करना चाहते हैं,इसी लिए उन्होंने अपने भक्तों को एजेंट के रूप में इस तरह फैला रखा है. 
आजकल एक बाबा की धूम मची हुई है.उन्हें आप भगवान के कृपा विभाग के अध्यक्ष समझ लीजिए.उनका कृपा बांटने का तरीका भी बहुत आसान है.आप काले रंग का पर्स ले जाइए.बाबा के सामने जा कर पर्स खोल दीजिए वे आपको पर्स भर कर कृपा दे देंगे.आप सौंठ के गोलगप्पे खा लें या काले कपडे पहने किसी महिला को देख लें तब भी वे कृपा आपके घर भेज देंगे.आप गोलगप्पे खा कर घर पहुंचेंगे कृपा आपका इंतज़ार करती मिलेगी.वास्तव में यह भगवान की कृपा ही है कि वह लोगों को कृपा देना चाहता है और इसी लिए उसने कृपा विभाग का अध्यक्ष कृपा देने वाले इतने उदार बाबा को बना रखा है कि आपको कुछ नहीं करना है, आपको गोलगप्पे खाने हैं या काला पर्स लेकर बाबा के पास जाना है.जितना बड़ा पर्स ले जाइए,चैन लगाकर उतनी ही कृपा बाबा से ले आइए
. आजकल टीवी पर जो धन वर्षा करने वाले यंत्र डिस्काउंट काट के मात्र तीन हज़ार में बिक रहे हैं,वे नई खोजें हैं वरना पहले से भी आम लोगों की समस्याएँ हल करने वालों की कोई कमी नहीं रही है.अखबारों में दिव्य पुरुषों के समागम से हर तरह के कष्ट दूर होने की पूरे पेज की खबरें छपती ही रहती हैं.बड़े से बड़ा कष्ट दूर करने के लिए आज तमाम दिव्य पुरुष हैं जिनका भगवान से सीधा सम्बन्ध है.छोटे-मोटे कष्ट तो ज्योतिषी और तांत्रिक जैसे छोटे मोटे एजेंट ही ठीक कर देते हैं.आप पर क्या विपत्ति आने वाली है यह आप ज्योतिष से जान सकते हैं और उस विपत्ति के कारण बुरे ग्रह-नक्षत्र को आसानी से दुरुस्त करा सकते हैं.अगर किसी महिला के बच्चा नहीं है और समाज ने बाँझ कह-कह कर उसका जीना हराम कर रखा है तो उसे इनफर्टिलिटी क्लिनिक में लाखों रु. खर्च करने की ज़रुरत नहीं है.इक्कीसवीं सदी में भी आपको ऐसे तांत्रिक आसानी से मिल जाएंगे कि उनके पास कुछ पूजा का सामान कुछ रूपए और बलि के लिए एक बच्चा ले कर चले जाएं आपकी समस्या हल हो जाएगी.

तो मित्रो यही वजह है कि मैं गर्व से कहने लगा हूँ कि मैं हिन्दू हूँ.यों तो हर धर्म के देवी-देवता,पीर-पैगम्बर अपने-अपने धर्म के लोगों का उद्वार करने के लिए ही होते हैं पर हिंदू धर्म के के देवी-देवताओं ने जिस तरह अपने एजेंट लोगों का कल्याण करने के लिए छोड़ रखे हैं उससे मेरे जैसे व्यक्ति को भी हिंदू होने पर गर्व होने लगा है.