एक समय ऐसा आ गया जब हर चीज़ पैसे से नापी जाने लगी. पैसे से हर काम होने लगा. जिसका हर काम हो जाए वही इज़्ज़तदार कहलाने का हक़दार बन गया. पैसा है तो इज़्ज़त है. इज़्ज़त है तो आप इंसान हैं. वरना कैटल क्लास, कीडे मकोडे कुछ भी हो सकते हैं.
ज़माना और आगे बड़ा. फिर पैसे का पर्याय क्रिकेट हो गई. क्रिकेट खेलना तो बहुत सम्मान की बात है क्रिकेट देखना भी सम्मान की बात हो गई. पैसा, राजनीति, घोटाले, सट्टा बज़ार विज्ञापन छेड़्छाड़ नंगापन सब कुछ क्रिकेट में समा गया. कुल मिलाकर लोकतांत्रिक पूँजीवाद की कोई चीज़ ऐसी नहीं रही जो क्रिकेट में न मिले.
क्रिकेट में बड़े नेता हैं. शरद पवार से लेकर लालू और अरुण जेटली तक जैसी मारामारी कभी मंत्री बनने के लिए मचा करती थी वैसी मारामारी आज क्रिकेट बोर्ड का पद लेने के लिए मची है. आने वाले समय में बी.सी.सी.आई का अध्यक्ष बनने की न्यूनतम शर्त यही होगी कि वह भारत का प्रधानमंत्री हो. क्लब वगैरह के अध्यक्ष को लाल और नीली बत्ती बाँटी जाया करेंगी. सरकार का समर्थन करने के लिए नेता मोल भाव करेंगे- उन्हें फलाँ क्रिकेट क्लब का अध्यक्ष बना दिया जाए.
क्रिकेट ने हमारे लोकतंत्र के सारे मानक बदल दिए हैं. अब लोग डॉक्टर, इंजीनियर,आई.ए.एस या वैज्ञानिक नहीं बनना चाहते अब लोग क्रिकेटर बनना चाहते हैं. पहले सुनने में आता था किसी आईआईटिअन वगैरह को 10-20 लाख का पैकेज मिला है तो बहुत बड़ी बात होती थी आज यह सुनना कि फलाँ क्रिकेटर 1-2 कारोड में बिका है या उसने किसी कंपनी से 20-30 कारोड़ की डील की है बहुत मामूली सी बात है. ज़ाहिर सी बात है आने वाले समय में लडके का रिश्ता आएगा तो घर वाले बड़े गर्व से कहा करेंगे लडका कॉलेज की क्रिकेट टीम में है. जैसे अभी लोग कहते हैं लडका सरकारी जॉब में है. कॉलेज टीम के कप्तान की हैसियत किसी डॉक्टर इंजीनियर से कम थोड़े ही होगी.
जैसे पूँजीवाद में बाज़ार का वर्चस्व होता है और जीवन का कोई भी क्षेत्र बाज़ार के मूल्यों प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता वैसे ही क्रिकेट ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. क्रिकेट ने संस्कृति, कला साहित्य भाषा सभी कुछ प्रभावित किया है. आलोचक लघुकथा के बारे में लिखता है तो ट्वेंटी ट्वेंटी की तरह हैं जैसी भाषा इस्तेमाल करता है. कहानी के बारे में लिखता है तो कहता है ये कहानियां वन डे जैसा आनंद देती हैं और उपन्यास की तुलना वह टेस्ट मैच से करता है. अखबार की तो पूरी भाषा ही क्रिकेट से उधार ले ली गई है. अगर आज प्रधानमंत्री इस्तीफ़ा दे दे तो उसका शीर्षक यही होगा- प्रधानमंत्री क्लीन बोल्ड.
अभी भ्रष्टाचार पर बहुत हाय तोबा हुई है. एक अखबार में मैंने पढ़ा- भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए क्रिकेट जैसा जुनून चाहिए. मतलब अब सब कुछ क्रिकेट से ही तय होगा. लडके वाले लड़की देखने जाएंगे तो ऐसे ही सवाल पूछेंगे- विस्फोटक बल्लेवाज क्या होता है? गुगली में और सीमर में क्या अंतर होता है? वगैरह-वगैरह.
राजनीतिशास्त्रियों व समाजशास्त्रियों को व्यवस्था को समझने के लिए क्रिकेट को समझना अनिवार्य होगा. क्रिकेट पूँजीवादी लोकतंत्र की सत्य प्रतिलिपि बन गई है. जिसमें पैसा है राजनीति है घोटाले हैं, पागलपन है सट्टा है, चीयर्स गर्ल्स हैं. और हां पूनम पांडे हैं. बहुत से लोग उसकी हरकत को एक आइटम गर्ल(वह भी इसी व्यवस्था की देन है) टाइप छिछोरी हरकत समझ कर बस मज़े ले रहे हैं. पर यह चीअर्स गर्ल्स से आगे की अवस्था है जो इस वर्डकप में न सही तो अगले वर्डकप में होनी ही है. और वह क्रिकेट के पूँजीवादी लोक्तंत्र की चरमावस्था होगी. आप यह भी कह सकते हैं कि तब क्रिकेट का पूँजीवाद अपने असली रूप में आ चुका होगा.
लेनिन ने कहा था साम्राज्यवाद पूँजीवाद की चरमावस्था है पर यह बात रूस और अमेरिका के लिए कही थी. भारत में पूँजीवाद की चरमावस्था क्रिकेट है.
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