क्रिकेट भी बहुत दिलचस्प खेल है. या फिर खेल तो कुछ दूसरा ही है उसमें थोड़ी सी क्रिकेट है. पता नहीं अब तक किसी क्रिकेट प्रेमी ने गिनीज बुक के लिए यह दावा क्यों नहीं किया कि ऐसा खेल जो एक दिन में उतनी जगह अख़बारों में पाता है जितनी जगह दूसरे खेलों को पूरी साल में नसीब होती है. मैच चल रहा है तब तक मैच के बारे में छप रहा है मैच ख़त्म हुआ तो अगले मैच के बारे में पढ़िए. पिच कैसी बनाई जा रही है, कौन सी टीम ने कितने मैच जीते हैं कितने हारे हैं, किस खिलाड़ी ने कितने रन बनाए हैं, कितने विकिट लिए हैं, कितने कैच लिए हैं, कितने छोड़े हैं, भारी आंकड़े हैं इस खेल में.अगर एक खिलाड़ी के आंकड़े भी बनाने बैठ गए तो ज़िंदगी निकल जाएगी पर आंकड़े नहीं बना पाओगे. वह भी तब जब केवल खेल के ही आंकड़े बनाने हों अगर दूसरे आँकड़े भी बनाने लगे तो फिर आपको दूसरा जन्म लेना पड़ेगा.
गिनीज़बुक, फ़ॉर्ब्स, टाइम न जाने कितने फालतू के आँकड़े बनाते रहते हैं. अगर एक बार क्रिकेट के बारे में आँकड़े बनाना शुरू कर दें तो और किसी के बारे में आँकड़े बनाने की फ़ुर्सत ही नहीं मिलेगी. एक मैच में सबसे अधिक विज्ञापन दिखाने वाला खेल, अखबारों में सबसे अधिक छाया रहने वाला खेल. खिलाड़िओं को सबसे ज़्यादा पैसे देने वाला खेल, सबसे ज़्यादा सट्टा लगवाने वाला खेल, सबसे ज़्यादा फिक्स होने वाला खेल, ऐसा खेल जो नेतओं को बहुत आकर्षित करता है. यों नेताओं को सिर्फ़ कुर्सी ही आकर्षित करती है परंतु क्रिकेट ऐसा खेल है जो नेताओं को कुर्सी के अलावा भी बहुत अधिक आकर्षित करता है. शरद पवार जो कभी प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए महासंग्राम छेड़े थे आज क्रिकेट की कुर्सी से ऐसे चिपके हैं कि कृषि मंत्री की कुर्सी तो उनके लिए जैसे किसी क्लब की सदस्यता जैसी हो गई है. क्या पक्ष क्या विपक्ष सिर्फ़ क्रिकेट की कुर्सी ऐसी है जो सत्ता की कुर्सी की तरह सबको समान रूप से आकर्षित करती है. लालू, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण जेटली ....आज के समय मे भला कौन सा ऐसा नेता होगा जो सत्ता की कुर्सी के साथ- साथ क्रिकेट की कुर्सी नहीं संभालना चाहेगा? आज कोई शरद पवार से पूछे कि आप क्रिकेट में रहना पसंद करेंगे कि मंत्रिमंडल में तो निःसंदेह वे क्रिकेट को ही चुनेंगे. दर अस्ल क्रिकेट के साथ इतने खेल जुड़े हुए हैं कि यह तय कर पाना बहुत कठिन है कि इन खेलों में क्रिकेट कितना है.
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