Saturday, 15 January 2011

कल्याण सिंह अब क्या करेंगे?

-Ram Prakash Anant
अयोध्या पर कोर्ट का फ़ैसला आ गया है. बात अयोध्या की हो और कल्याण सिंह का नाम न आए ऐसा कैसे हो सकता है.वे कह रहे हैं कि वे मंदिर मुद्दे को नहीं छोड़ेंगे.मंदिर वहीं बनाएंगे.यों वे क्या कह रहे हैं उसका कोई मतलब नहीं है.एक समय ऐसा भी था जब वे कुछ भी कह देते थे मीडिया के लिए उसका मतलब होता था,लेकिन अब नहीं है. वे कह रहे हैं मस्जिद गिराने का उन्हें कोई अफ़सोस नहीं है. कुछ दिन पहले वे कह रहे थे मस्जिद गिराना उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी. और मस्जिद गिराई गई तब भी उन्होंने काफ़ी गर्व महसूस किया था. लगता है वे बहुत ज़्यादा कंफ़्यूज़ हो गए हैं कि मस्जिद गिराना उनकी सबसे बड़ी भूल थी, या फिर भाजपा छोड़ना उनकी सबसे बड़ी भूल थी या फिर मुलायम सिंह के साथ आना. सही भी है. राजनीति में आज वे जिस जगह खड़े हैं वहाँ पर कोई भी कंफ़्यूज़ हो सकता है. वे तो कंफ़्यूज़ ही हैं वरना जिस जगह वे खड़े हैं वहाँ तो आदमी के होश ही उड़ जाएं. ख़ैर.
एक बार उनसे सपने में मुलाक़ात हो गई तो हमने ऐसे ही मुद्दों पर उनसे बातचीत की. उन्होंने जो बेबाक उत्तर दिए उन्हें हम नीचे दे रहे हैं-
प्रश्न- अभी आप कह रहे हैं कि आप हिंदू एवं मंदिर मुद्दे को नहीं छोड़ेंगे, कुछ दिन पहले जब आप मुलायम सिंह के साथ थे तब कह रहे थे, मस्जिद गिराना आप की ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी. क्या आप इस मुद्दे पर कंफ़्यूज़ हैं ?
कंफ़्यूज़ शब्द सुनकर उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया. बोले- देखिए में राजनीति में राजनीति करने आया हूँ, अपने आप को हरिश्चंद्र सिद्ध करने नहीं. भाजपा ने मंदिर मुद्दे पर पूरी राजनीति खड़ी कर ली. उसके वोट बैंक का आधार ही मंदिर मुद्दा और मुस्लिम विरोध है. मैं मुलायम की पार्टी में आया. उनकी पार्टी के वोट बैंक का आधार पिछड़े व मुस्लिम हैं. सो मैंने कहा मस्जिद गिराना मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी. फिर क्या मुझे यह कहना चाहिए था, मस्जिद गिराने पर मुझे गर्व है?
उनकी बेबाक टिप्पणी से हम निरुत्तर हो गए. फिर थोड़ी हिम्मत जुटा कर बोले-सिद्धांत भी तो कोई चीज़ होती है?
उत्तर- होती क्यों नहीं है बहुत बड़ी चीज़ होती है, लेकिन गणित और विज्ञान की किताबों में. राजनीति में सिद्धांत का कोई मतलब हो तो हमें बताइए.
बहुत सोचने के बाद भी राजनीति में सिद्धांत से किसी का कोई मतलब समझ नहीं आया तो हमने अगला प्रश्न किया- आप भी मंदिर की बात करते हैं और भाजपा भी करती है, आप भी हिंदू की बात करते हैं भाजपा भी करती है फिर आपने भाजपा क्यों छोड़ी?
उत्तर- देखिए न हमें हिंदू से कोई मतलब है न उमा को कोई मतलब है न भाजपा को. हो सकता है संघ को कोई मतलब हो. आपने निदा फ़ाज़ली की नज़्म 'एक नेता के नाम' तो पढ़ी ही होगी 'तुम्हें हिदू की चाहत है न मुस्लिम से अदावत है, तुम्हारा धर्म सदियो से तिज़ारत था तिज़ारत है.' लोग कहते हैं यह नज़्म एक नेता के नाम नहीं आडवाणी के नाम है. पर मैं कहता हूँ यह नज़्म सभी नेताओं के नाम है. हमारा धर्म सदियों से तिज़ारत था तिज़ारत है. जहाँ तक भाजपा छोड़ने का सवाल है आप ख़ुद समझदार हैं, ख़ुद जानते हैं कि कोई राजनीति क्यों करता है और क्यों किसी पार्टी को छोड़ता है.
हमने आगे पूछा- आप फिर हिंदू और मंदिर मुद्दे पर लौट आए हैं भाजपा के आगे आपको कौन पूछेगा?
उत्तर -तो आप ही बताइए किस मुद्दे पर राजनीति करूँ? मुसलमान मुझ पर विश्वास नहीं करते, पिछड़ों की राजनीति शरद यादव, लालू, मुलायम ने हथिया ली. दलित मायावती को छोड़कर मेरे पास क्यों आएंगे?
बात उनकी 24 कैरट सही थी सो हम निरुत्तर हो गए. हमें चुप देखकर वे उठकर चले गए. शायद उन्हें किसी हिंदू रैली को संबोधित करना था.वे उठकर चले गए तो हमारी भी आँख खुल गई.अब हम नींद में नहीं थे जाग गए थे सो कई तरह के सवाल मन में आते रहे.
भले ही कल्याण सिंह के पास कोई और मुद्दा न हो पर हिंदुत्व पर उनकी दुकान नहीं चल पाएगी. किसी ज़माने में उमा भारती भाजपा के हिंदुत्व की सबसे बड़ी ब्रांड एंबेसडर थीं. उन्हें भी ग़लतफ़हमी हो गई. किसी कंपनी का ब्रांड एंबेसडर होना अलग बात है और उसी माल को अपना ब्रांड बना कर बेचना दूसरी बात है. वे बार-बार चिल्ला रही हैं कि भाजपा का हिंदुत्व नकली है मेरा असली, फिर भी आज उनके हिंदुत्व को कोई दो कौड़ी में भी नहीं पूछ रहा है.

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