Wednesday, 5 January 2011

इससे तो वही अच्छा था

-राम प्रकाश अनंत
एक समय ऐसा भी आया जब बिहार में सुशासन का गुणगान करने से मीडिआ को सांस लेने की फ़ुरसत नहीं थी.हर कोई यह बताने के लिए बाबला हुआ जा रहा था कि नीतीश ने कितनी सड़्कें बनवा दीं. सही भी है जहाँ 15 साल में लालू पगडण्डियां तक नहीं बनवा पाए वहाँ अगर सड़क बन जाए तो वह कोई मामूली विकास है! उसे सुशासन नहीं तो और क्या कहा जाएगा. बाक़ी हत्याएं,बलात्कार रंगदारी भर्तियों में घोटाले अपनी जगह हैं. सुशासन के लिए तो बस एक सड़क की ज़रूरत होती है. भले ही मुख्यमंत्री आवास के पास लोग भ्रष्टाचार व लापरवाई से तंग आ कर आत्महत्या कर रहे हों. सड़क बनने को ही पूरा मीडिआ सुशासन कह रहा है तो मान लेते हैं और हमारे न मानने से भला क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा.
सुना जाता है जनता कर्मचारियों को दौड़ा दौड़ा कर पीट रही है. डॉक्टरों तक को नहीं बख़्श रही.अब तो एक महिला ने किसी बलात्कारी नेता का ख़ून ही कर दिया.लगता है सरकार ने सुशासन की बागडोर सीधे जनता के हाथ में दे दी है -अपना न्याय ख़ुद करो,सुशासन के बाद अब नया शब्द स्वशासन ही आएगा.यानी जनता के द्वारा ख़ुद का शासन.
जब में छोटा था तब गांव में प्रधानी के चुनाव थे.दो उम्मीदवार मैदान मैं थे. गांव के एक बुज़ुर्ग़ एक कहानी सुनाते थे. एक राजा बहुत अत्याचारी था.जब वह मरने को हुआ तो रोने लगा. उसके बेटे ने पूछा-क्यों रो रहे हो? तो उसने कहा मैंने जनता पर इतने अत्याचार किए हैं कि मरने के बाद कोई मेरा नाम नहीं लेगा.लड़्का बोला, आप चिंता मत करो आपका नाम सारी जनता लेगी.उसके बाद जब लडका राजा बना तो उसने मुनादी पिटवा दी कि मरने के बाद हर आदमी को राज दरबार में लाया जाए.जब मरा हुआ आदमी राज दरबार में लाया जाता तो वह उसके खूंटा ठोंक देता.पूरी जनता में हा-हाकार मच गया. जनता कहती-इससे तो पहले वाला ही अच्छा था. वह तो ज़िंदा आदमी पर ही अत्याचार करता था. यह तो मरे हुए आदमी की भी दुर्गति कर देता है. बिहार ने कुशासन और सुशासन दोनों देख लिए.अब आप ही सोचिए यह अच्छा है या इससे पहले वाला ही अच्छा था.

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