Wednesday, 5 September 2012

आखिर विकास का मामला है

              आजकल टीवी चैनलों पर एक ही बहस है
, संसद के न चल पाने की समस्या. यानी संसद का न चल पाना आज की सबसे बड़ी समस्या है. कुछ लोग कह रहे हैं कि यह कोई समस्या ही नहीं है.संसद पिछले 65 सालों से चल रही है फिर भी वहीं खड़ी है जहां अंग्रेज खड़ी छोड़ गए थे.फिर ऐसे चलने का क्या फ़ायदा? कुछ लोग कह रहे हैं अच्छा है जो संसद नहीं चल रही, अगर चलती भी तो क्या होता यही कि एक दूसरे से गाली गलौज होती, माइक फेंके जाते, कुर्सिया तोड़ी जातीं,हाय हाय शर्म करो का भभड़ मचाया जाता. अगर ऐसा कुछ नहीं किया जाता तो एक ही काम करने के लिए बचता है, कंपनियों को कोयला आवंटित करना या टू जी आवंटित करना या फिर उन्हें बालको जैसी मुनाफ़ा कमाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी कंपनियों को सौंपना.ये सब काम जनता के हित में नहीं हैं इसलिए संसद का न चल पाना जनहित में है. जो भी हो पर यह बात सच है कि संसद नहीं चल पा रही है और संसद न चल पाने का कारण है कोयला घोटाला और कोयला घोटाले का कारण है कैग की रिपोर्ट. चूंकि कांग्रेस कोई घोटाला करना नहीं चाहती थी और कैग की रिपोर्ट एक नया घोटाला कर रही थी इसलिए कांग्रेस ने यही उचित समझा कि कैग की रिपोर्ट को झूठा कह कर घोटाला होने से रोका जाए .विपक्ष ने अपना विपक्ष धर्म निभाते हुए इस बात को दोहराया कि कैग की रिपोर्ट एकदम सही है और घोटाला होने दिया जाए. इस तरह एक और घोटाला हो गया 1.86 लाख करोड़ का. आप सोच रहे होंगे कि मैं इसे महा घोटाला क्यों नहीं कह रहा हूँ तो इसका जवाब यह है कि अभी डेढ़ साल पहले ही टू जी हुआ है 1.70 लाख करोड़ का. तब यही कहा गया था कि यह बहुत बड़ा घोटाला है और इसे महा घोटाला का नाम दिया गया था. फिर 500-1000 करोड़ के घोटाले तो रोज़ ही हो रहे हैं और उन्हें नोटिस भी नहीं किया जा रहा, उन्हें बस छोटी मोटी चोरी माना जा रहा है. इसलिए नई शब्दाबली के अनुसार लाख दो लाख करोड़ के मामले को महाघोटाला कहना कहीं से भी उचित नहीं है. खैर कांग्रेस ने एक बार फिर घोटाला रोकने की कोशिश की और बताया कि कैग को इस तरह की गणना करने का कोई अधिकार नहीं है. विपक्ष ने फिर बताया कि अधिकार हो या न हो गणना हो चुकी है और किसी भी हालत में घोटाले को होना ही पड़ेगा. इस तरह करीब दो लाख करोड़ के एक और घोटाले को मज़बूरन होना पडा जिसे आजकल कोयला घोटाला कहा जा रहा है. अगर यह घोटाला, कोयला घोटाला ही रहता तो कोई बात नहीं थी लेकिन जैसे ही विद्वानों ने इसे कोलगेट का नाम दिया भाजपा ने उसे गौर से देखा,कोलगेट ...कोल और गेट...गेट! वे खुशी से चिल्लाए, मिल गया मिल गया. लोगों ने पूछा, क्या मिल गया? वही जिसकी दस साल से तलाश थी, गेट....संसद में घुसने का गेट जिससे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा जाए. तो इस तरह भाजपा ने अपनी रणनीति तय की कि इस गेट का पूरी तरह फाइदा उठाते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचना है और वहां पहुँचने का फाइदा तभी है जब प्रधानमंत्री इस्तीफा देकर कुर्सी खाली करें. इस तरह कांग्रेस के कोयला घोटाला और भाजपा की पक्की रणनीति के साथ संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ.ऐसे में वही हुआ जो होना था यानी कांग्रेस ने कहा घोटाला हुआ है तो संसद में आओ और बहस करो और भाजपा ने कहा प्रधानमंत्री इस्तीफा दें क्योकि प्रधानमंत्री अब हमारा होगा और इसी तरह बहस और इस्तीफा में संसद का यह सत्र गुजर गया. संसद में बहस नहीं हो पाई और आजकल बहस के दो ही स्थान हैं, संसद या टीवी चैनल. तो संसद में बहस नहीं हो रही क्योकि संसद में बहस के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों का बैठना ज़रूरी होता है जबकि टीवी चैनल पर एक ही पक्ष होता है टीवी का मालिक. वह चाहेगा बहस होनी चाहिए तो बहस होगी, वह चाहेगा निर्मल बाबा का दरबार लगना चाहिए तो दरबार लगेगा, वह चाहेगा कि चौबीस घंटे शनि महाराज का प्रकोप दूर करने के टोटके बताए जाने चाहिए तो टोटके बताए जाएंगे. तो आजकल कई टीवी चैनलों पर बहसें चल रही हैं, कोयला घोटाले पर बहसें.ऐसे ही एक चैनल पर कोयला घोटाले पर बहस चल रही थी उसे हम आपको बताते हैं. बहस में एक एंकर, एक कांग्रेसी नेता,एक भाजपा नेता, एक सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी हैं. एंकर ने सवाल पूछा- तिवारी जी आप संसद नहीं चलने दे रहे हैं? तिवारी जी-बिलकुल नहीं चलने दे रहे हैं, सरकार ने दो लाख करोड़ का कोयला घोटाला किया है, हम संसद नहीं चलने देंगे. "भंडारी जी आप बताएं तिवारी जी कह रहे हैं कि सरकार ने करीब दो लाख करोड़ का घोटाला किया है." "देखिए सरकार ने कोई घोटाला नहीं किया. कैग की रिपोर्ट जो पहले झूठी थी और अब सही हो गयी है उससे यह जो 1.86 लाख करोड़ का मामला निकल के आया है वह घोटाला नहीं है घाटा है. कैग का कहना है कि कोयले का आवंटन होने से और नीलामी न होने से कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ का फाइदा हुआ है. और यह सीधी बात है कि कंपनियों को फाइदा हुआ तो सरकार को घाटा हुआ. इसमें घोटाले की बात कहाँ से आ गई. सच यह है कि अभी यह घाटा भी नहीं है. जब कोयला खदानों में पड़ा है, वह निकला ही नहीं तो घाटा भी कहाँ से हो गया. जब कंपनियां कोयला निकालेंगीं, उसका उपयोग करेंगी तब जा कर वह घाटा होगा. अभी तो यह जीरो लॉस ही है. जीरो लॉस यानी आइन्स्टीन के E =M C2 की तरह हमारे कपिल सिब्बल ने एक खोज की है जीरो लॉस." "तिवारी जी आप बताएं कि आप कब तक संसद नहीं चलने देंगे?" "जब तक प्रधानमंत्री इस्तीफा नहीं दे देते हैं. जब प्रधानमंत्री इस्तीफा देंगे,चुनाव होंगे,हमारे मंत्री और प्रधानमंत्री बनेंगे तक संसद चलेगी." "भंडारी जी आप बताएं, क्या आपके प्रधानमंत्री इस्तीफा देंगे?" "बिलकुल नहीं देंगे. कैग की रिपोर्ट के आधार पर भाजपा प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग रही है तो वह बताए कि उसके मुख्यमंत्रियों के बारे में भी कैग की रिपोर्ट ऐसी ही है फिर वे अपने मुख्यमंत्रियों से इस्तीफा क्यों नहीं मांग रहे....इसमें मुख्यमंत्रियों की बात कहाँ से आ गयी,बात प्रधानमंत्रियों के इस्तीफे की हो रही थी.....मुख्यमंत्रियों की बात क्यों नहीं आएगी....प्रधानमंत्री इस्तीफा दें,जनता को पता चल गया है कि आपकी पार्टी भ्रष्ट है...आपकी पार्टी महाभ्रष्ट है..तिवारी जी आप उनकी बात सुन लीजिए ......aapake हाथ कोयले से काले है.....अच्छा भंडारी जी आप ही उनकी बात सुन लीजिए....कर्नाटक में यदुरप्पा और रेड्डी बंधुओं के हाथ भी कोयले से काले हैं..तिवारी जी....आप भ्रष्ट हैं ....भंडारी जी..... आप महाभ्रष्ट हैं...सुनिए तो....आप....अच्छा आप ही चुप हो जाइए....आप...    अब इसमें एंकर क्या करे.पैंतालीस मिनट मिले, उसमें से तीस मिनट विज्ञापन में निकल गए. फिर बहस के के लिए सांसद बुलाए गए जिन्हें लगता है वे जहां भी बैठे हैं संसद की कार्रवाई चल रही है.        तो आजकल ये सब बातें चल रही हैं समाज में. पार्टी अन्ना अभी नई है, रामदेव अभी पार्टी बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं. क्योंकि चुनाव लोकसभा का होना है इसलिए क्षेत्रीय पार्टिया चुनाव में जीती सीटों के आधार पर ही गिनती में आएगीं. पूरा मामला कांग्रेस व भाजपा के आसपास लिपट गया है. ऐसे में हमने भी एक कांग्रेसी और एक भाजपाई के साथ बहस आयोजित की.क्योंकि हमारे पास टीवी चैनल नहीं है इसलिए उसे लाइव नहीं दिखा पाए,आप भी पढ़ें- हमने दोनों से पूछा- संसद नहीं चल पा रही है, आपकी पार्टियों में क्या मतभेद हैं?
दोनों-कोई मतभेद नहीं है, छोटे मोटे मतभेद तो हर जगह होते हैं....हमने उन दोनों की बात बीच में काट कर पूछा- फिर संसद क्यों नहीं चल पा रही है?
कांग्रेसी- विपक्ष अपनी सही भूमिका नहीं निभा रहा है. उसका लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास नहीं है. बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष को सशक्त भूमिका निभानी चाहिए. भाजपाई- यही तो हमारा मत है कि बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष को सशक्त भूमिका निभानी चाहिए. पर सत्ता पक्ष का लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास नहीं है. लोकतंत्र सबको बराबर अवसर देने की बात करता है. हमें विपक्ष की सशक्त भूमिका निभाते निभाते दस साल होने जा रहे हैं.अब हम लोकतांत्रिक भावनाओं का सम्मान करते हुए कांग्रेस को yah अवसर देना चाहते है पर कांग्रेस लोकतंत्र की भावना का सम्मान नहीं कर रही है. प्रधानमंत्री इस्तीफा न देकर ,चुनाव नहीं कराना चाहते और हमें सत्ता पक्ष की सशक्त भूमिका निभाने से रोक रहे हैं. हमने भाजपाई से पूछा- अब तक प्रधानमंत्री सिर्फ एक ही काम के लिए जाने जाते हैं और वो है विकास दर.जब वे वित्त मंत्री थे तब उन्होंने विकास के लिए आर्थिक उदारीकरण को बढ़ावा दिया और प्रधानमंत्री बनने के बाद दस साल होने जा रहे है, उनका एक ही लक्ष्य रहा है विकास दर बढ़ाना. प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा है कि वे विकास दर बढ़ाना चाहते थे और कम्पनियां भी विकास दर बढ़ाने के लिए कम्पनियां भी उतावली हो रही थीं. कंपनियों को पॉवर चाहिए और पॉवर कोयले से बनाती है. क्योंकि संसदीय प्रक्रिया बहुत लम्बी थी इसलिए उन्होंने उन्होंने जल्दी से विकास दर बढ़ाने के लिए जितनी जल्दी संभव था उतनी जल्दी कोयला आवंटित कर दिया. तो क्या आपकी पार्टी विकास की विरोधे है,वह नहीं चाहती कि जल्दी से विकास दर बढे ?"
आपने प्रधानमंत्री का वक्तव्य तो सुन लिया और उसके बाद हमारे नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस कर के जो कहा था वह नहीं सूना." हमारी बात पर वे बुरी तरह उत्तेजित हो गए" हमारे नेताओं ने कहा था, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि विकास दर बढ़ाने के लिए उन्होंने जल्दी आवंटन किया. वे बताएं कहाँ बड़ी विकास दर, कोयला अभी खदानों में पड़ा है,कंपनियों के पास पॉवर नहीं है,बताएं कहाँ बढ़ी विकास दर. अब बताओ कि हमारी पार्टी कैसे विकास विरोधी है.       हम उनसे पूर्ण सहमत हुए. हमें लगा उनके नेता कहना चाहते थे कि सरकार ऐसे ही विकास दर बढ़ाना चाहती है,अगर कंपनियों ने आवंटन के बाद भी कोयला नहीं उठाया तो सरकार को उसे ट्रकों में भरकर उन तक पहुंचा देना चाहिए था. सही है , विकास दर बढ़ाने का मामला है. देश का विकास और देश का कोयला, आवंटन करने की भी क्या ज़रुरत थी, जितनी ज़रुरत हो भर ले जाओ.

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