आजकल माहौल ठीक नहीं
है इसलिए. घर से निकलते हुए बहुत डर लगता है. इसलिए नहीं कि देश की सड़कें बहुत खतरनाक हैं और उनपे आए दिन दुर्घटनाएं होती
रहती हैं,रोज़ दस बीस पच्चीस पचास लोगों के मरने की खबरें आती
ही रहती हैं. इन दुर्घटनाओं की तो अब आदत सी पड़ गयी है.
डर इसलिए लगता है कि देश की पुलिस बहुत सक्रिय है. नहीं नहीं गलत मत समझिए मैं कोई चोर डकैत नहीं हूँ. और
वैसे भी चोर डकैत आजकल बेख़ौफ़ हो गए हैं क्योंकि पुलिस आजकल या तो हफ्ता वसूली में व्यस्त है और उससे समय मिलता
है तो वह देश द्रोहियों को पकड़ने में व्यस्त है.तो मामला यह
है कि आजकल घर से निकलते हुए डर लगता है कि पुलिस बहुत सक्रिय है. आजकल वह देशद्रोहियों को पकड़ने में लगी है.आजकल लाखों
करोड़ का भ्रष्टाचार कर देना देश द्रोह नहीं है क्योंकि उसके लिए संसद बनी है और उसके
लिए बहस होगी, आजकल सेकड़ों लोगों का कत्लेआम करा देना भी देशद्रोह
नहीं है उसके लिए जांच आयोग है जो दस साल में जांच कर के कोर्ट को बताएगा कोर्ट अपना
फैसला सुनाएगा,फिर उस पर अपील होगी,फिर
उस पर फैसला आएगा और फिर उस पर अपील होगी. कोई पांच दस हज़ार लोगों
का क़त्ल करा दे तो उसके लिए एक कानूनी प्रक्रिया
है,जांच आयोग बैठाना, अदालत से फैसला आना
फिर उस पर अपील होना फिर उस का फैसला आना फिर उस पर अपील होना, फिर एक जांच आयोग बैठाना, फिर एक फैसला आना, फिर उस पर अपील होना,फिर वही जांच आयोग..फैसला..अपील...
राज ठाकरे कहते हैं महाराष्ट्र में सिर्फ मराठी मानुष रहेगा,बाकी या तो भाग जाएं, या फिर उन्हें हम मार मार के भगा
देंगे. इसका असर भी हो रहा है. लोग सिर
पर पैर रख के भाग रहे हैं, भागने के लिए रेलगाड़ियाँ कम पड़ गयी
हैं वे फिर भी भाग रहे हैं, आखिर जान किसे प्यारी नहीं होती.
यह संविधान का अपमान नहीं है, देशद्रोह नहीं है.अगर होता तो राज ठाकरे जब से राजनीति में आए हैं तब से आज तक यही नहीं कर रहे
होते.
देशद्रोह क्या है और क्या नहीं है, हो
सकता है यह संविधान में लिखा हो और जज या वकील तय करते हों. लेकिन
हमारे देश में देशद्रोह क्या है सबसे पहले तो यह पुलिस ही तय करती है. बाद में आप अदालत में हाज़िर किए गए और किसी तरह दस बीस साल में यह तय भी हो
गया कि आपने कोई देशद्रोह नहीं किया है तो आप खुद ही मानने लगेंगे कि ज़रूर आपने कोई
देशद्रोह किया होगा तभी आपको इतनी सज़ा मिली है.
तो दोस्तों आजकल देशद्रोह का मौसम सा आ
गया है. जिसे देखो वही देशद्रोह करने
में लगा हुआ है और पुलिस आए दिन किसी न किसी देशद्रोही को पकड़ लाती है.विशेष कर लेखक,कलाकार,मानवाधिकार
कार्यकर्ता वगैरह के लिए तो विशेष तौर से एहतियात बरतने की ज़रुरत है. कुछ लिखना है तो प्रेमिका पर लिख लें दारू पर लिख लें, समाज की समस्याओं पर न लिखें क्योंकि पता नहीं आप का लिखा हुआ कब देशद्रोह
बन जाए कुछ नहीं कह सकते. अगर आप कार्टूनिस्ट हैं तो वैसे ही
कार्टून बनाएं जैसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय
ने निर्देश दिए हैं यानी फूल पत्ती वगैरह बना लें. पुलिस, फ़ौज
निर्दोषों को मारे तो यह सच्चाई कभी न बोलें वरना यह देशद्रोह होगा. घर से निकलें तो अच्छी तरह देख लें कि थैले में कोई किताब वगैरह तो नहीं पड़ी
है वरना वह देशद्रोह हो सकता है.
लेकिन सवाल यह है कि आप कितना एहतियात
बरतेंगे. अब देखिए उमा भारती चेग्वेरा
को आदर्श बताती हैं तो वे देश भक्त हैं और आप उसे आदर्श मानेंगे तो आप देशद्रोही हो
सकते है. आपके थैले में चेग्वेरा की जीवनी मिल गई तो कोर्ट में
एक दलील तो हो ही सकती है कि एक व्यक्ति जिसने एक देश की व्यवस्था उखाड़ने में हिस्सा
लिया और वहां की व्यवस्था उखड गई तो देश छोड़ के दूसरे देश में ऐसा करने के लिए चला
गया. ऐसे खतरनाक व्यक्ति की जीवनी पढ़ना देशद्रोह ही होगा.
बात यही है कि बेशक आप
एहतियात बरतें पर पुलिस को आपका कोई काम पसंद आ गया देशद्रोह लगाने के लिए तो वह तो
लगा ही देगी. कोई बता रहा था कि उनके पड़ौस में दस साल के एक बच्चे पर पुलिस ने देशद्रोह का मुक़द्दमा लगा दिया
है. हुआ यह कि बच्चे ने एक शेर जैसी आकृति अपनी कॉपी में बना दी जिसकी भनक पड़ौसी को
लग गयी. पड़ौसी जो रात दिन देश को शर्मिन्दा करने वाले कामों में लगा रहता था उसकी देश
भक्ति चित्र को देखकर जाग गयी और उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी कि मेरे पड़ौसी के
बच्चे ने तीन शेरों की जगह एक शेर बना कर हमारे राष्ट्रीय चिह्न का अपमान किया है.
पुलिस जो देश की जनता के लिए ज़रुरत पर कभी उपलब्ध नहीं होती वह तुरंत मौके पर पहुँची
और बच्चे को गिरफ्तार कर राष्ट्रद्रोह का मुक़द्दमा लगाती हुई बोली जो बच्चा अभी से
ऐसे कारनामे कर रहा है वह बड़े होने पर तो पूरी कक्षा को देशद्रोही बना देगा.
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