Wednesday, 1 May 2013

फांसी से कम कुछ नहीं : आगे -आगे देखिए होता है क्या


         
             अभी कुछ महीने पहले ही एक लड़की का बलात्कार हुआ था और उसके बाद देश में जो प्रदर्शन हुए उससे सरकार तक घबरा गई थी. सरकार अगर किसी चीज़ से घबराती है तो वह है लोगों का आक्रोश और इन प्रदर्शनों में लोगों में आक्रोश था. वैसे तो राजनेता होते ही आश्वासन देने को हैं पर इन प्रदर्शनों के दौरान सरकार ने आश्वासनों के अपडेट्स की जो झड़ी लगाई उससे लगने   लगा था कि  किसी भी समय कुछ भी हो सकता है. लोगों ने कहा ऐसे लोगों का तो बधियाकरण कर देना चाहिए,सरकार ने कहा इस पर विचार कर रही है .लोगों ने कहा फांसी की सज़ा होनी चाहिए,सरकार ने कहा वह फांसी की सज़ा पर तुरंत विचार करेगी.प्रदर्शनकारियों में से एक महिला ने तो यह भी कहा कि फांसी से क्या होगा उससे तो एक झटके में मर जाएगा,ऐसे लोगों को तो पत्थर से कुचल कुचल के मारना चाहिए.खैर यह बात किए गए दुष्कर्म के प्रति उस महिला की नफ़रत और व्यवस्था से निराश उसके आक्रोश को दर्शाती है पर सरकार का क्या भरोसा. अगर लोगों ने महिला का समर्थन किया होता तो वह कह देती सरकार ऐसा ही क़ानून बनाने पर विचार कर रही है. कानून बनाने वालों का क्या है, उन पर तो कोई क़ानून लागू होता नहीं है.अगर उन पर क़ानून लागू होता तो आज देश की यह स्थिति ही नहीं होती.
           तो सरकार उस समय बेहद डरी हुई थी.जो प्रधानमंत्री शपथ लेते समय बोले थे और उसके बाद वे  सिर्फ यह बताने के लिए बोले थे कि उन्होंने चुप रह कर कितने लोगों की आबरू रख ली, उन्हें भी बोलना पड़ा कि वे उस लड़की की पीड़ा समझते हैं,उनके भी तीन बेटियाँ हैं.प्रधानमंत्री बोले तो गृहमंत्री को भी बोलना पड़ा कि उनके भी तीन बेटियाँ हैं. मैं सोचता रहा अगर इस वक़्त कलाम राष्ट्रपति होते तो कितना शर्मिन्दा महसूस करते. पर नेताओं का क्या है.एक सज्जन बता रहे थे कि एक व्यक्ति के बाप को दबंगों ने बहुत मारा. वह रिपोर्ट लिखाने गया तो थानेदार ने हमेशा की तरह रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया.वह अपने कुछ आदमियों के साथ विधायक के घर पहुंचा. विधायक ने उस व्यक्ति को अन्दर बुलाकर  टीवी से नज़र हठाए बिना पूछा-कहिए क्या बात है?वह बोला-गाँव वे दबंगों ने हमारे बाप को बहुत मारा है और थानेदार रिपोर्ट नहीं लिख रहा है. विधायक उससे मुखातिब होते हुए बोले-हम तुम्हारा दुःख समझते हैं,हमारे भी तीन बाप हैं पर पहले ये बताओ कि तुम कौन जाति  के हो और जिन्होंने मारा है वे कौन जाति  के हैं.
      तो सरकार प्रदर्शनकारियों से घबराई हुई थी सो उसने कानून बनाने के लिए तुरंत एक कमेटी का गठन कर दिया. कानून बन गए तो लगा अब तो बलात्कार जैसी घटनाएं रुक ही जाएँगी पर ऐसा नहीं हुआ और अभी पता चला है कि एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है और उसके बाद लोग प्रदर्शन पर उतर आए हैं. लोगों का आक्रोश जाइज है. हर घर में बेटियाँ हैं,महिलाएं हैं कब किसके साथ कौन सी घटना घट जाए.इस तरह की घिनोनी घटनाएं रुकनी ही चाहिए. पर विडम्बना यह है कि समाज के चाहने से तो घिनोनी घटनाएं रुक नहीं जातीं.अगर ऐसा होता तो अब तक बहुत कुछ रुक जाना चाहिए था.जनता में आक्रोश बढ़ेगा तो उसका काम है वह उसके लिए संघर्ष करे,प्रदर्शन करे और और व्यवस्था का काम है वह अपने तरीके से उसे दिशा दे. कानून बनाने के बाद भी बलात्कारों में कोई कमी नहीं आई है यह बात जनता ने मान ली है और वह प्रदर्शन करने के मूड में आ गई है तो वही सब होगा जो व्यवस्था करना चाहेगी.
         यानी संसद में बहस होगी. माहौल के मुताबिक़ बहस की ज़िम्मेदारी महिला सांसदों पर ही होगी.सभी महिला सांसद यह बताएंगी कि वास्तव में बलात्कार की घटनाएं बढ़ गई हैं और वे भी सुरक्षित नहीं हैं उन्हें भी डर लगता है.फिर विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कहेंगी=हमने पिछली बार भी कहा था कि बलात्कारियों को फांसी की सज़ा दो और हम फिर कहते हैं कि उन्हें एक बात नहीं दो बार फांसी की सजा दो. मीडिया के लिए यह यह समय सक्रिय  रहने का है.इधर सुषमा स्वराज कुछ कहेंगी उधर मीडिया टूट पडेगा खबरों पर,सुनिए सुषमा स्वराज ने क्या कहा,स्मृति ईरानी ने क्या कहा,मायावती ने क्या कहा. कौन कौन सी सांसद सदन में रो पड़ीं उन्हें देखिये .
     अच्छा तो अब हम आपको सीधे जंतर मंतर ले चलते हैं वहां हमारे संवाददाता नारद पहले ही मौजूद हैं. नारद जी जंतर मंतर पर कैसा माहौल है?नारद जी पहले पांच छह लड़के लड़कियों को घेर के बताते हैं- यहाँ भीड़ काफी जुटी हुई है, लोगों में जबरदस्त गुस्सा है वे सख्त से सख्त सज़ा की मांग कर रहे हैं.एक लड़की की ओर माइक बढ़ाकर नारद जी पूंछते हैं- आपका क्या मानना है बलात्कारियों को फांसी से कम सज़ा नहीं होनी चाहिए? हाँ,उन्हें फांसी से कम सज़ा नहीं होनी चाहिए.आपने देखा लोग फांसी से कम पर राज़ी नहीं है. नारद जी पांच छह लोगों को और घेर लेते हैं-आपको क्या लगता है बलात्कारियों को फांसी से भी कड़ी सज़ा होनी चाहिए,उन्हें पत्थर से कुचल कुचल कर मारा जाना चाहिए?
         अगर प्रदर्शन बढे तो इन दिनों मीडिया का कार्यक्रम बड़ा टाईट हो जाएगा. सुबह उठते ही वे बताएंगे कि बिना समाज को बदले बलात्कार की घटनाएं नहीं  रुक सकतीं.समाज बदल रहा है,देखिए  पूरे देश में कहाँ-कहाँ लड़कियां मार्शल आर्ट सीख रही हैं.  इसके बाद लगेगा कि शायद छब्बीस जनवरी की रिहर्सल शुरू हो गई है.उसके बाद वे आपको सीधे जंतर-मंतर या इंडिया गेट ले जाएंगे जहां प्रदर्शनकारी फांसी से कम कुछ भी मानने को तैयार नहीं हैं. उसके बाद ख़ास शो शुरू होगा जिसमें अजीब अजीब से शीर्षक वाली खबरों की झड़ी लग जाएगी -एक साल से अस्सी साल तक की महिलाओं के बलात्कारों की.तीन महीने पहले जब प्रदर्शन हो रहे थे तब टीवी देख के ऐसा लगाने लगा था कि इस पवित्र भारतभूमि एक ही काम है जो हर जगह हो रहा है-बलात्कार.आदमी जब घर लौटते थे तो घर की महिलाएं उन्हें देखकर सशंकित हो उठती थीं-हे भगवान कुछ ऐसा वैसा न कर आया हो.गली मौहल्ला,रेल,बस,ऑफिस तक में महिलाएं पुरुषों को अजीब सी निगाहों से देखने लगी थीं.फिर प्रदर्शन बंद हो गए,क्रिकेट आ गई ,राहुल-मोदी आ गए तो लोगों ने राहत की सांस ली, चलो बलात्कार बंद हो गए.
           जो चैनल दिन को बहस के लिया अच्छा नहीं मानते वे शाम से बहसें शुरू करेंगे.पैनल बनाएंगे और फिर बहस शुरू होगी. विपक्ष की सारी महिला सांसद कहेंगी मनमोहन सिंह इस्तीफा दें,शीला दीक्षित इस्तीफा दें.कोंग्रेसी सांसद कहेंगी,रेप तो मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा हो रहे हैं,पहले शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें. भाजपाई कहेंगी-एक पांच साल की बच्ची जिसका सब कुछ लुट गया ऐसी जघन्य घटना पर भी आप राजनीत कर रही हैं.अरे राजनीति से ऊपर उठ कर सोचिए और अपने मुख्यमंत्री से कहिए कि वे इस्तीफा दें.खाप पंचायत के पास कहने को ज़्यादा कुछ नहीं है  वे कहने के बजाय करने में विशवास रखते हैं.उनके पास सीधे फार्मूले हैं चाउमीन पर पावंदी,मोबाइल पर पाबंदी. अगर फिर भी बलात्कार नहीं रुके तो वे लड़कियों द्वारा एक मिनिट में अठारह बार से अधिक सांस लेने पर पाबंदी लगाने के बारे में सोचेंगे.यह पूरी तरह वैज्ञानिक बात होगी.विज्ञान कहता है एक मिनिट में सांस लेने की औसत दर 14 से 18 है. रामसेना के लोग किसी बहस-वहस के चक्कर में नहीं पड़ते,उनका सीधा सिद्धांत है. जो वे बताएं वैसे कपड़े पहनो नहीं तो उनकी भावनाएं भड़क सकती हैं. उसके बाद पैनल में बहस करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता बचती  हैं.वे एक ही बात कहेंगी कि समाज को बदलना पड़ेगा.समाज कैसे बदलेगा?यह वे तब सोचेंगी जब उनके ngos को मोटा फंड मिल जाएगा.
            धरना प्रदर्शन की बात हो और  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् यानी abvp की बात न की जाए तो बात का कोई मतलब नहीं रह जाता. दिसंबर में जब बलात्कार को लेकर प्रदर्शन हुए तो abvp  ने दिल्ली से लेकर आगरा तक खूब यज्ञ किए. मुद्दा कोई भी हो,ये लोग अपने अंगोछा में हवन सामिग्री बांधे तैयार रहते हैं,बताइए कहाँ कराना है यज्ञ.  दिल्ली में घटना घाट गई है, लोग प्रदर्शन के लिए इकट्ठे होने लगे हैं,उम्मीद है उन्होंने भी अपना अंगोछा संभाल लिया होगा.

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