Thursday, 15 August 2013

पंद्रह अगस्त पर देशभक्ति का एक काम

         रात को देर तक काम करने के कारण नींद पूरी नहीं हो पाई थी  पर जागना मेरी मजबूरी थी.कानों में तेज़-तेज़ आवाजें आ रही थीं-ये देश है वीर जवानों का,अलबेलों का मस्तानों का,इस देश का यारो क्या कहना.आँखें खोलते ही मुझे यकीन हो गया कि पंद्रह अगस्त आ गया.पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी दो ही तो दिन हैं जब सुबह हमारी नींद देश भक्ति के गाने सुन कर खुलती है वरना तीन सौ तिरेसठ दिन  तो हम देवी जागरण,भागवत कथा,अजान ,रमजान का शोर सुनकर ही नींद से जागते हैं.
तो नींद खुलते ही हमें पता चल गया कि आज पंद्रह अगस्त है.सो हम तुरंत मुंह हाथ धोकर ऑफिस के लिए चल दिए.ऑफिस पहुँच कर देखा झंडा फहराने की तैयारियां चल रही हैं.एक कर्मचारी झंडे को डंडे में बांधने की कोशिश कर रहा था पर वह इस उलझन में उलझा था कि कौन सा रंग ऊपर रहेगा और कौन सा नीचे.उसने अपनी समस्या दूसरों को बताई.किसी ने कहा हरा ऊपर रहेगा,किसी ने कहा केसरिया ऊपर रहेगा.फाइनली यह निश्चित नहीं हो सका कि कौन सा रंग ऊपर रखा जाएगा और कौन सा नीचे.तभी एक बच्चा स्कूल जाता दिखाई दिया.किसी ने आवाज़ दी. बच्चा हमारी तरफ आ रहा था तो सबके चहरे पर उम्मीद की एक किरण दिखाई दी.मेरी ज़िंदगी में यह पहला मौक़ा था जब हर किसी को उम्मीद थी कि जो बात वे नहीं जानते वह यह बच्चा ज़रूर जानता होगा वरना हमारी संस्कृति में तो लोग बाप बन जाते हैं तब तक घर वाले डांट के चुप कर देते हैं-चुप कर तू बच्चा है. खैर समस्या हल हुई तो सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. झंडा रोहण शुरू हुआ.डोरी खींचने के बाद जनगण मनगण शुरू हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि समूह में कितनी ताक़त होती है.दो लाइन के बाद चालीस लोगों ने जब भिन्न-भिन्न आवाजें निकालना शुरू किया तो शेष पांच लोग उनकी नैया पार लगा ले गए.उसके बाद महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के साथ साथ भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस के भी नारे लगाए तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि देश उन्हें भूला नहीं है.
इसके बाद करने को एक ही काम बचता है-भाषणवाजी. भाषणवाजी शुरू हुई तो, लालकिले पर पंद्रह अगस्त को दिए जाने वाले भाषण की तरह  एक बार फिर वही सब बातें वक्ताओं ने दोहराईं जो पंद्रह अगस्त को हर बार दोहराई जाती हैं.लेकिन वह भाषण ही क्या जिसका कोई लक्ष्य न हो और वह वक्ता ही क्या जो अपने भाषण को लक्ष्य तक न पहुंचा पाए. वैसे पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को दिए जाने भाषणों में ही हमारे वक्ता नाकारा साबित हुए हैं वरना पैंसठ साल से चतुर वक्ता भाषण दे कर ही इस देश को बहला रहे हैं और अपने लक्ष्य में सफल रहे हैं.
ऐसे बिकट समय में जब पंद्रह अगस्त पर भाषण करना एक कर्मकांड बन गया है अधीक्षक महोदय के भाषण से जैसे उम्मीद के सारे दरवाज़े खुल गए.इससे पहले जिन वक्ताओं ने लंबा चौड़ा भाषण दिया था कि हमें आज़ादी लंबे संघर्ष के बाद मिली है,हम शहीदों की कुर्बानी को व्यर्थ नहीं जाने देंगे.वक्ता हर साल की तरह भाषण देते रहे और श्रोता हर साल की तरह सुनते रहे.वो तो भला हो हमारे अधीक्षक का.उन्होंने एक छोटा सा भाषण दिया और लोगों में देश भक्ति की भारी लहर दौड़ पडी. उन्होंने थोड़ा कहा बहुत समझना वाले अंदाज़ में बोला-देश को आज़ाद कराने के लिए देश भक्तों ने जान की बाजी लगा दी.आज हम इतने खुदगर्ज़ हो गए हैं कि देश के बारे में कुछ भी नहीं सोचते.अस्पताल में एक्स-रे मशीन खराब पड़ी है,गरीब जनता का इलाज़ ठीक से नहीं हो पा रहा है. शहीदों ने देश के लिए जान तक दे दीं,हम देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और हम लोग पांच सौ हज़ार रूपए भी नहीं दे सकते.
कुछ लोगों ने हाथ उठाया,सर हम देंगें.वे समझ गए अभी भी देश में काफी देशभक्ति ज़िंदा है पर वे जानते थे भारत-पाकिस्तान के मैच की तरह कब देशभक्ति उबाल खा जाए और कितनी जल्दी नीचे उतर आए कुछ भरोसा नहीं.सो वे तुरंत हज़ार का नोट निकालते हुए बोले-लीजिए सबसे पहले मैं देता हूँ.

अब कितना बजट आता है, कैसे खर्च होता है,ऊपर वाले को पैंतीस परसेंट दे दें,कोई कुछ पूछने वाला नहीं है.भले ही आप मुम्बई से तकनीशियन बुलाएं और बीस हज़ार उसके आने जाने का खर्च टांक दें.ऑडिट वालों को उनका चोखा हिस्सा दे दें फिर सब कुछ सही है. लेकिन इन सब बातों का देश और देशभक्ति से क्या मतलब है. अधीक्षक ने देशभक्ति की भावना इतने लोगों में भर दी भला पंद्रह अगस्त की इससे अच्छी सार्थकता और क्या हो सकती है.तो जोर से बोलिए-अमर शहीदों का बलिदान,याद रखेगा हिन्दुस्तान.  

गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दू हूँ

       गर्व से कहता हूँ मैं हिंदू हूँ. नहीं नहीं मैं भाजपा में शामिल नहीं हुआ हूँ. दरअस्ल राम मंदिर आंदोलन के समय भाजपा ने यह नारा दिया था तब से बहुत से हिंदू गर्व से हिंदू कहने में संकोच महसूस करने लगे हैं. इस समय देश की स्थिति जैसी भी है वह सबको पता है.देश की बहुसंख्यक जनता काफी आर्थिक संकट में है.सत्तर प्रतिशत जनता बीस रूपए रोज़ पर गुज़र कर रही है.ऐसे में उम्मीद बंधी है कि हिंदू धर्म इस देश की बहुसंख्यक जनता को उसके संकटों से निजात दिला सकता है. बस इतनी सी बात है जो मैं गर्व से कहता हूँ मैं हिन्दू हूँ. यह बात मैं ठोस आधार पर कह रहा हूँ.
     जिस चेनेल को देखिए उसी पर धूम मची हुई है.कहीं हमारे समय के सुपरस्टार गोविंदा शुभधन वर्षा लिए खड़े हैं, कहीं कोई मन्त्र पढ़-पढ़ कर बता रहे हैं कि उनका तंत्र किस तरह हनुमान और शंकर जैसे दो शक्तिशाली देवताओं से सिद्ध किया हुआ है, कोई धन की देवी लक्ष्मी का तंत्र देने को उतावला है तो कोई कह रहा है सिर्फ लक्ष्मी से काम नहीं चलेगा मैं साथ में कुबेर की चाबी भी दूंगा.बन्दे की बात में दम है.एक बैंक मेनेजर भी ताला पियोन से खुलवाता है,लक्ष्मी धन की देवी हैं वे खजाने का ताला खुद तो नहीं खोलेंगी. तो दोस्तों हमारे देवताओं ने इतने एजेंट छोड़ रखे हैं लोगों के धन के अभाव को दूर करने के लिए.कहते हैं भगवान भक्त के वश में होते हैं.भक्तों ने लक्ष्मी,हनुमान,शिवजी सिद्ध कर लिए हैं.अब तो उन्हें वही करना पडेगा जो उनके भक्त कहेंगे.फिर वे एक-डेढ़ हज़ार के डिस्काउंट के साथ मात्र तीन-साढ़े तीन हज़ार में अपना सिद्ध किया तंत्र यंत्र दे रहे हैं, भला इससे सस्ता सौदा और क्या हो सकता है.बस यों समझ लीजिए हमारे देवी -देवता लोगों की धन की समस्या हल करना चाहते हैं,इसी लिए उन्होंने अपने भक्तों को एजेंट के रूप में इस तरह फैला रखा है. 
आजकल एक बाबा की धूम मची हुई है.उन्हें आप भगवान के कृपा विभाग के अध्यक्ष समझ लीजिए.उनका कृपा बांटने का तरीका भी बहुत आसान है.आप काले रंग का पर्स ले जाइए.बाबा के सामने जा कर पर्स खोल दीजिए वे आपको पर्स भर कर कृपा दे देंगे.आप सौंठ के गोलगप्पे खा लें या काले कपडे पहने किसी महिला को देख लें तब भी वे कृपा आपके घर भेज देंगे.आप गोलगप्पे खा कर घर पहुंचेंगे कृपा आपका इंतज़ार करती मिलेगी.वास्तव में यह भगवान की कृपा ही है कि वह लोगों को कृपा देना चाहता है और इसी लिए उसने कृपा विभाग का अध्यक्ष कृपा देने वाले इतने उदार बाबा को बना रखा है कि आपको कुछ नहीं करना है, आपको गोलगप्पे खाने हैं या काला पर्स लेकर बाबा के पास जाना है.जितना बड़ा पर्स ले जाइए,चैन लगाकर उतनी ही कृपा बाबा से ले आइए
. आजकल टीवी पर जो धन वर्षा करने वाले यंत्र डिस्काउंट काट के मात्र तीन हज़ार में बिक रहे हैं,वे नई खोजें हैं वरना पहले से भी आम लोगों की समस्याएँ हल करने वालों की कोई कमी नहीं रही है.अखबारों में दिव्य पुरुषों के समागम से हर तरह के कष्ट दूर होने की पूरे पेज की खबरें छपती ही रहती हैं.बड़े से बड़ा कष्ट दूर करने के लिए आज तमाम दिव्य पुरुष हैं जिनका भगवान से सीधा सम्बन्ध है.छोटे-मोटे कष्ट तो ज्योतिषी और तांत्रिक जैसे छोटे मोटे एजेंट ही ठीक कर देते हैं.आप पर क्या विपत्ति आने वाली है यह आप ज्योतिष से जान सकते हैं और उस विपत्ति के कारण बुरे ग्रह-नक्षत्र को आसानी से दुरुस्त करा सकते हैं.अगर किसी महिला के बच्चा नहीं है और समाज ने बाँझ कह-कह कर उसका जीना हराम कर रखा है तो उसे इनफर्टिलिटी क्लिनिक में लाखों रु. खर्च करने की ज़रुरत नहीं है.इक्कीसवीं सदी में भी आपको ऐसे तांत्रिक आसानी से मिल जाएंगे कि उनके पास कुछ पूजा का सामान कुछ रूपए और बलि के लिए एक बच्चा ले कर चले जाएं आपकी समस्या हल हो जाएगी.

तो मित्रो यही वजह है कि मैं गर्व से कहने लगा हूँ कि मैं हिन्दू हूँ.यों तो हर धर्म के देवी-देवता,पीर-पैगम्बर अपने-अपने धर्म के लोगों का उद्वार करने के लिए ही होते हैं पर हिंदू धर्म के के देवी-देवताओं ने जिस तरह अपने एजेंट लोगों का कल्याण करने के लिए छोड़ रखे हैं उससे मेरे जैसे व्यक्ति को भी हिंदू होने पर गर्व होने लगा है.

Wednesday, 1 May 2013

फांसी से कम कुछ नहीं : आगे -आगे देखिए होता है क्या


         
             अभी कुछ महीने पहले ही एक लड़की का बलात्कार हुआ था और उसके बाद देश में जो प्रदर्शन हुए उससे सरकार तक घबरा गई थी. सरकार अगर किसी चीज़ से घबराती है तो वह है लोगों का आक्रोश और इन प्रदर्शनों में लोगों में आक्रोश था. वैसे तो राजनेता होते ही आश्वासन देने को हैं पर इन प्रदर्शनों के दौरान सरकार ने आश्वासनों के अपडेट्स की जो झड़ी लगाई उससे लगने   लगा था कि  किसी भी समय कुछ भी हो सकता है. लोगों ने कहा ऐसे लोगों का तो बधियाकरण कर देना चाहिए,सरकार ने कहा इस पर विचार कर रही है .लोगों ने कहा फांसी की सज़ा होनी चाहिए,सरकार ने कहा वह फांसी की सज़ा पर तुरंत विचार करेगी.प्रदर्शनकारियों में से एक महिला ने तो यह भी कहा कि फांसी से क्या होगा उससे तो एक झटके में मर जाएगा,ऐसे लोगों को तो पत्थर से कुचल कुचल के मारना चाहिए.खैर यह बात किए गए दुष्कर्म के प्रति उस महिला की नफ़रत और व्यवस्था से निराश उसके आक्रोश को दर्शाती है पर सरकार का क्या भरोसा. अगर लोगों ने महिला का समर्थन किया होता तो वह कह देती सरकार ऐसा ही क़ानून बनाने पर विचार कर रही है. कानून बनाने वालों का क्या है, उन पर तो कोई क़ानून लागू होता नहीं है.अगर उन पर क़ानून लागू होता तो आज देश की यह स्थिति ही नहीं होती.
           तो सरकार उस समय बेहद डरी हुई थी.जो प्रधानमंत्री शपथ लेते समय बोले थे और उसके बाद वे  सिर्फ यह बताने के लिए बोले थे कि उन्होंने चुप रह कर कितने लोगों की आबरू रख ली, उन्हें भी बोलना पड़ा कि वे उस लड़की की पीड़ा समझते हैं,उनके भी तीन बेटियाँ हैं.प्रधानमंत्री बोले तो गृहमंत्री को भी बोलना पड़ा कि उनके भी तीन बेटियाँ हैं. मैं सोचता रहा अगर इस वक़्त कलाम राष्ट्रपति होते तो कितना शर्मिन्दा महसूस करते. पर नेताओं का क्या है.एक सज्जन बता रहे थे कि एक व्यक्ति के बाप को दबंगों ने बहुत मारा. वह रिपोर्ट लिखाने गया तो थानेदार ने हमेशा की तरह रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया.वह अपने कुछ आदमियों के साथ विधायक के घर पहुंचा. विधायक ने उस व्यक्ति को अन्दर बुलाकर  टीवी से नज़र हठाए बिना पूछा-कहिए क्या बात है?वह बोला-गाँव वे दबंगों ने हमारे बाप को बहुत मारा है और थानेदार रिपोर्ट नहीं लिख रहा है. विधायक उससे मुखातिब होते हुए बोले-हम तुम्हारा दुःख समझते हैं,हमारे भी तीन बाप हैं पर पहले ये बताओ कि तुम कौन जाति  के हो और जिन्होंने मारा है वे कौन जाति  के हैं.
      तो सरकार प्रदर्शनकारियों से घबराई हुई थी सो उसने कानून बनाने के लिए तुरंत एक कमेटी का गठन कर दिया. कानून बन गए तो लगा अब तो बलात्कार जैसी घटनाएं रुक ही जाएँगी पर ऐसा नहीं हुआ और अभी पता चला है कि एक पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है और उसके बाद लोग प्रदर्शन पर उतर आए हैं. लोगों का आक्रोश जाइज है. हर घर में बेटियाँ हैं,महिलाएं हैं कब किसके साथ कौन सी घटना घट जाए.इस तरह की घिनोनी घटनाएं रुकनी ही चाहिए. पर विडम्बना यह है कि समाज के चाहने से तो घिनोनी घटनाएं रुक नहीं जातीं.अगर ऐसा होता तो अब तक बहुत कुछ रुक जाना चाहिए था.जनता में आक्रोश बढ़ेगा तो उसका काम है वह उसके लिए संघर्ष करे,प्रदर्शन करे और और व्यवस्था का काम है वह अपने तरीके से उसे दिशा दे. कानून बनाने के बाद भी बलात्कारों में कोई कमी नहीं आई है यह बात जनता ने मान ली है और वह प्रदर्शन करने के मूड में आ गई है तो वही सब होगा जो व्यवस्था करना चाहेगी.
         यानी संसद में बहस होगी. माहौल के मुताबिक़ बहस की ज़िम्मेदारी महिला सांसदों पर ही होगी.सभी महिला सांसद यह बताएंगी कि वास्तव में बलात्कार की घटनाएं बढ़ गई हैं और वे भी सुरक्षित नहीं हैं उन्हें भी डर लगता है.फिर विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कहेंगी=हमने पिछली बार भी कहा था कि बलात्कारियों को फांसी की सज़ा दो और हम फिर कहते हैं कि उन्हें एक बात नहीं दो बार फांसी की सजा दो. मीडिया के लिए यह यह समय सक्रिय  रहने का है.इधर सुषमा स्वराज कुछ कहेंगी उधर मीडिया टूट पडेगा खबरों पर,सुनिए सुषमा स्वराज ने क्या कहा,स्मृति ईरानी ने क्या कहा,मायावती ने क्या कहा. कौन कौन सी सांसद सदन में रो पड़ीं उन्हें देखिये .
     अच्छा तो अब हम आपको सीधे जंतर मंतर ले चलते हैं वहां हमारे संवाददाता नारद पहले ही मौजूद हैं. नारद जी जंतर मंतर पर कैसा माहौल है?नारद जी पहले पांच छह लड़के लड़कियों को घेर के बताते हैं- यहाँ भीड़ काफी जुटी हुई है, लोगों में जबरदस्त गुस्सा है वे सख्त से सख्त सज़ा की मांग कर रहे हैं.एक लड़की की ओर माइक बढ़ाकर नारद जी पूंछते हैं- आपका क्या मानना है बलात्कारियों को फांसी से कम सज़ा नहीं होनी चाहिए? हाँ,उन्हें फांसी से कम सज़ा नहीं होनी चाहिए.आपने देखा लोग फांसी से कम पर राज़ी नहीं है. नारद जी पांच छह लोगों को और घेर लेते हैं-आपको क्या लगता है बलात्कारियों को फांसी से भी कड़ी सज़ा होनी चाहिए,उन्हें पत्थर से कुचल कुचल कर मारा जाना चाहिए?
         अगर प्रदर्शन बढे तो इन दिनों मीडिया का कार्यक्रम बड़ा टाईट हो जाएगा. सुबह उठते ही वे बताएंगे कि बिना समाज को बदले बलात्कार की घटनाएं नहीं  रुक सकतीं.समाज बदल रहा है,देखिए  पूरे देश में कहाँ-कहाँ लड़कियां मार्शल आर्ट सीख रही हैं.  इसके बाद लगेगा कि शायद छब्बीस जनवरी की रिहर्सल शुरू हो गई है.उसके बाद वे आपको सीधे जंतर-मंतर या इंडिया गेट ले जाएंगे जहां प्रदर्शनकारी फांसी से कम कुछ भी मानने को तैयार नहीं हैं. उसके बाद ख़ास शो शुरू होगा जिसमें अजीब अजीब से शीर्षक वाली खबरों की झड़ी लग जाएगी -एक साल से अस्सी साल तक की महिलाओं के बलात्कारों की.तीन महीने पहले जब प्रदर्शन हो रहे थे तब टीवी देख के ऐसा लगाने लगा था कि इस पवित्र भारतभूमि एक ही काम है जो हर जगह हो रहा है-बलात्कार.आदमी जब घर लौटते थे तो घर की महिलाएं उन्हें देखकर सशंकित हो उठती थीं-हे भगवान कुछ ऐसा वैसा न कर आया हो.गली मौहल्ला,रेल,बस,ऑफिस तक में महिलाएं पुरुषों को अजीब सी निगाहों से देखने लगी थीं.फिर प्रदर्शन बंद हो गए,क्रिकेट आ गई ,राहुल-मोदी आ गए तो लोगों ने राहत की सांस ली, चलो बलात्कार बंद हो गए.
           जो चैनल दिन को बहस के लिया अच्छा नहीं मानते वे शाम से बहसें शुरू करेंगे.पैनल बनाएंगे और फिर बहस शुरू होगी. विपक्ष की सारी महिला सांसद कहेंगी मनमोहन सिंह इस्तीफा दें,शीला दीक्षित इस्तीफा दें.कोंग्रेसी सांसद कहेंगी,रेप तो मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा हो रहे हैं,पहले शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें. भाजपाई कहेंगी-एक पांच साल की बच्ची जिसका सब कुछ लुट गया ऐसी जघन्य घटना पर भी आप राजनीत कर रही हैं.अरे राजनीति से ऊपर उठ कर सोचिए और अपने मुख्यमंत्री से कहिए कि वे इस्तीफा दें.खाप पंचायत के पास कहने को ज़्यादा कुछ नहीं है  वे कहने के बजाय करने में विशवास रखते हैं.उनके पास सीधे फार्मूले हैं चाउमीन पर पावंदी,मोबाइल पर पाबंदी. अगर फिर भी बलात्कार नहीं रुके तो वे लड़कियों द्वारा एक मिनिट में अठारह बार से अधिक सांस लेने पर पाबंदी लगाने के बारे में सोचेंगे.यह पूरी तरह वैज्ञानिक बात होगी.विज्ञान कहता है एक मिनिट में सांस लेने की औसत दर 14 से 18 है. रामसेना के लोग किसी बहस-वहस के चक्कर में नहीं पड़ते,उनका सीधा सिद्धांत है. जो वे बताएं वैसे कपड़े पहनो नहीं तो उनकी भावनाएं भड़क सकती हैं. उसके बाद पैनल में बहस करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता बचती  हैं.वे एक ही बात कहेंगी कि समाज को बदलना पड़ेगा.समाज कैसे बदलेगा?यह वे तब सोचेंगी जब उनके ngos को मोटा फंड मिल जाएगा.
            धरना प्रदर्शन की बात हो और  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् यानी abvp की बात न की जाए तो बात का कोई मतलब नहीं रह जाता. दिसंबर में जब बलात्कार को लेकर प्रदर्शन हुए तो abvp  ने दिल्ली से लेकर आगरा तक खूब यज्ञ किए. मुद्दा कोई भी हो,ये लोग अपने अंगोछा में हवन सामिग्री बांधे तैयार रहते हैं,बताइए कहाँ कराना है यज्ञ.  दिल्ली में घटना घाट गई है, लोग प्रदर्शन के लिए इकट्ठे होने लगे हैं,उम्मीद है उन्होंने भी अपना अंगोछा संभाल लिया होगा.

Sunday, 21 April 2013

सवा सदी के महानायक हैं अमिताभ बच्चन


                              
       नायक दो तरह के होते हैं। वे लोग जो समाज के लिए कोई बड़ा काम करते हैं उन्हें नायक कहते हैं और दूसरे वे जो फिल्मों में अच्छा काम करने का अभिनय करते हैं उन्हें नायक कहते हैं।  फिल्मों में अच्छा काम कुछ भी हो सकता है। जैसे हीरोइन को प्यार करना अच्छा काम है। दूसरा व्यक्ति उस अच्छे काम में बाधा डालता है. हीरो उसे मारता है. पिटने वाले को खलनायक और पीटने वाले को नायक  कहते हैं।
        यह बात अब पूरी तरह स्थापित हो गई है कि आमिताभ बच्चन महानायक हैं। वे पूरी सदी के महानायक हैं।  मैं भी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि वे महानायक हैं। वैसे तो वे अभिनेता हैं और उन्होंने तमाम फिल्मों में नायक का अभिनय किया है। लेकिन मैं उन्हें इसलिए महानायक नहीं मानता कि उन्होंने फिल्मों में नायक का बहुत अच्छा अभिनय किया है। मैं उन्हें इसलिए महानायक मानता हूँ कि वे जीवन भर समाज को बेहतर बनाने के लिए लड़ते रहे। जहां भी अत्याचार हुआ,भ्रष्टाचार हुआ, इस समाज को बदलने के लिए वे पूरी व्यवस्था से  अकेले ही भिड़ गए। दस बीस,पच्चीस पचास जितने भी गुंडे, मवाली, अत्याचारी सामने पड़ गए,सबको अकेले ही निबटा दिया। दबे कुचले गरीब शोषितों के लिए वे हमेशा व्यवस्था से टकराते रहे। उन्होंने कुली व ताँगे वालों में यह बोध भरा कि कुली व तांगे वाला होना कोई हीनता की बात नहीं है. अगर एक कुली को अल्लाह रक्खा मिल जाए और एक तांगे  वाले को मोती मिल जाए तो फिर वे धरती से किसी भी तरह का अत्याचार मिटाने में सक्षम हैं।रईस से रईस की बेटी को वे पटाने की क्षमता रखते हैं।  आज आमिर का ज़माना है और वे अपनी फिल्मों में आई.पी. एस. का  रोल  करते हैं।वो ज़माना अमिताभ का था जब दरोगा को ही सब कुछ समझा जाता था। अमिताभ बच्चन ने भी दरोगा यानी पुलिस इंस्पेक्टर के कई रोल किए और इस बात की उम्मीद जगाई कि अगर पुलिस इंस्पेक्टर ईमानदार हो जाए तो सब कुछ बदला जा सकता है। अमिताभ बच्चन हमेशा शोषित और गरीबों की लड़ाई लड़ते रहे।चाहे उन्होंने तांगे वाले का रोल किया,कुली का किया या पुलिस इंस्पेक्टर का हर जगह वे गरीब आदमी के  लिए  ज़ुल्म और अत्याचार से टकराते नज़र आते हैं।जहां तक कि  वे अमीर बाप के बेटे हुए तब भी अपने बाप के विरुद्ध पैग लगा कर वे गरीबों के लिए ही लड़ते रहे।  
        अमिताभ बच्चन सिर्फ फिल्मो में ही अच्छे रोल नहीं करते थे अपनी निजी ज़िंदगी में भी वे महानायक ही हैं।आजकल नेताओं पर कैसे कैसे आरोप लगते रहते हैं और वे ढीठ बने रहते हैं।अमिताभ बच्चन ने शादी की तो चाकू छुरियाँ तेज़ करने वाली एक लड़की के साथ की।वे राजनीति में आए, बोफोर्स में उनका नाम उछला तो तुरंत राजनीति छोड़ दी। उन पर आरोप लगा की बाराबंकी में वे किसानों की ज़मीन हथियाना चाहते हैं तो उन्होंने तुरंत वह ज़मीन जिसे वे हथियाना चाहते थे किसानों को दान दे दी।समाज के हित में उन्होंने कभी विवाद को बढाया नहीं। इतने  पर भी सरकारें आए दिन उनके घर इन्कमटेक्स वालों को भेजती रहती हैं पर यह उनकी महानता ही है कि उन्होंने मामले को तूल देने के बजाय उसी जगह शांत कर दिया.                                                                                                                    पिछले दिनों मैं टी वी पर उनका इंटरव्यू देख रहा था तो बड़ा दुःख हुआ। वे कह रहे थे -केबीसी के लिए वे आज भी बहुत मेहनत करते हैं। केबीसी समाज बदल रहा है।लोग अपने ज्ञान के बदले पैसे जीत के ले जाते हैं। इससे समाज में समानता आ रही है,समाज बदल रहा है। 
               कितने शर्म की बात है की हम अपने महानायक के साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं। उन्होंने समाज बदलने के लिए पूरी उम्र लगा दी। और आज उन्हें आराम की ज़रुरत है तब भी हम समाज बदलने के लिए उन से अत्यधिक मेहनत करा रहे हैं। यह उम्र उनके लिए मेहनत करने  की नहीं है।पर अमिताभ बच्चन महान हैं महानायक हैं और यही उनकी महानता है।वे उम्र के इस पड़ाव पर भी समाज बदलने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।वे ज़रूरतमंदों को करोड़पति बनाने का मंच उपलब्ध कराते हैं। लोग अपने ज्ञान के बल पर लाखों करोड़ों कमा  जाते हैं। यह काम भी केबीसी और हमारे महानायक ही कर सकते हैं वरना ज्ञान के बल पर आज के समय में करोड़पति तो किया लखपति बनना भी असंभव है। आप ज्ञान के बल पर डाक्टर ,इंजीनियर,वैज्ञानिक बन सकते हैं पर पी डब्लू डी जैसे किसी डिपार्टमेंट में नौकरी न मिले तो करोडपति नहीं बन सकते। ऐसे में हमारे महानायक ज्ञान के बल पर लोगों को करोड़पति बना रहे हैं और समाज को बदल रहे हैं तो यह मामूली बात नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यह है उन्होंने लोगों के मन में करोड़पति बनने की इच्छा पैदा की है    वैसे तो अमिताभ बच्चन समाज बदलने के लिए इस कार्यक्रम के लिए इतनी मेहनत करते हैं।उन्होंने तमाम ज़रुरतमंदों को लाखों दिए हैं।वे ज्ञान के प्रदर्शन का पूरा मौक़ा देते हैं।तीन-तीन हेल्प लाइन देते हैं।आखिर समाज बदलने के लिए इससे अधिक वे और क्या कर सकते हैं।इससे बड़ी बात यह है कि उन्होंने लोगों में यह भावना भरी है कि ज्ञान के बल पर भी करोड़पति बना जा सकता है।तमाम प्रोफेसर किस्म के लोग जिन्हें अपने ज्ञान पर ज़्यादा ही भरोसा होता है फोन लगाने में जुटे रहते हैं।ऐसे ही हमारे एक मित्र हमसे कह रहे थे - यार कैसे कैसे लोग केबीसी में पहुँच जाते हैं। सिंपल से क्वेश्चन का जवाब भी नहीं दे पाते।   उसके बाद वे सीधे मुझसे मुखातिब हुए।बोले- यार तुम तो पढ़ते लिखते रहते हो केबीसी में कोई जुगाड़ है? कभी भी नंबर मिलाओ मिलता ही नहीं।हम और तो कुछ नहीं कर सकते थे।सो उन्हें सांत्वना दी - लगे रहो।कहते हैं लगे रहने से तो एक दिन भगवान भी मिल जाते हैं।फिर कुछ किस्मत की भी बात होती है।किस्मत में लिखा होगा तो ज़रूर मिलेगा केबीसी का नंबर। हमारी इस बात से मित्र महोदय बेहद प्रभावित हुए।बोले-किस्मत की बात तो है ही वरना ऐसे ऐसे लोगों का नंबर मिल जाता है और हमने इतनी बार मिलाया एक बार भी नहीं मिला।लगता है पूरी ज़िंदगी में मित्र को किस्मत पर इतना विश्वास नहीं हुआ होगा जितना केबीसी को नंबर लगाने के बाद हुआ है।
            तो हमारे अमिताभ बच्चन सदी के महानायक हैं।लेकिन इस उम्र में भी वे समाज बदलने के लिए जो मेहनत कर रहे हैं उसके लिए उन्हें सदी क्या अगली सदी का भी महानायक कहा जाना।सदी की तो अभी शुरुआत ही हुई है। लंबा समय पड़ा है।लेकिन चौथाई सदी गुज़र चुकी है और उनके आसपास अभी कोई ऐसा महानायक दिखाई भी नहीं दे रहा है।सो कोई उन्हें  सदी का महानायक माने या न माने सवा सदी का महानायक तो माना ही जा सकता है. कोई माने या न माने मैं तो मानता हूँ-सवा सदी के महानायक हैं हमारे अमिताभ बच्चन।